‘व्यू बढ़ाने के लिए कुछ भी करेंगा‘ -यह वाक्य वर्तमान समाज का मूलमंत्र बन गया है। किसी की औक़ात और हैसियत इस बात से मापी जाने लगी है कि उसे कितने लोग फॉलो करते हैं। दुनिया के तमाम काम लाइक, फॉलो, सब्रक्राइब, शेयर और कमेंट जैसे शब्दों तक सीमित हो गए हैं।
आप कितने भी बड़े योगी हों, अगर आपके सोशल मीडिया फॉलोअर्स नहीं हैं, तो आपका योग किसी काम का नहीं। और अगर आपने किसी तरह से सोशल मीडिया पर स्वयं को योगी सिद्ध कर दिया तो फिर योग की कोई सिद्धि हो या न हो, कोई फर्क़ नहीं पड़ता। इसीलिए सफल योगी बनने के लिए योग करने से अधिक आवश्यक है, ट्वीट करना।
आपकी दुकान चले या न चले, फेसबुक चलती रहनी चाहिए। फेसबुक की एक्टिविटी रुक गयी तो दुकान पर ग्राहकों की भीड़ से कोई लाभ नहीं।
आप वाइल्ड लाइफ सफारी पर जाएँ तो पर्यटक बनकर नहीं, फोटोग्राफर बनकर जाएँ। शेर दिखे तो उसे निहारने की बजाय कैमरा निकालकर जिराफ़ बन जाइए। न जाने कौन-सा क्लिक आपको इंस्टा पर फेमस कर देगा।
रील्स देखो तो समझ आता है कि फेमस होने की इस होड़ में न कोई मर्यादा शेष बची है, न ही कोई हिचक। साठ सेकेंड तक दर्शकों को अपनी रील पर रोके रखने के लिए सारी सीमाएं लांघ दी गईं। कूल्हे मटकाकर दर्शकों का मन नहीं बहला तो नंगी पीठ दिखाकर रोक लिया। इससे भी बात नहीं बनी तो भद्दी गालियाँ देकर फेमस होने निकल पड़ी। आजकल स्कर्ट या फ्राक के नीचे के वस्त्र दिखाने तक को नॉर्मल माना जाने लगा है। 30 सेकेंड की इन वीडियो क्लिप को मिलियन और बिलियन व्यू का आँकड़ा दिलाने के लिए युवतियों ने लज्जा को ब्रेन से ब्लॉक कर दिया है।
पुरुष भी इस अपराध में समान उत्तरदायी है। पूरा-पूरा दिन स्क्रॉल करके रील देखनेवाले अंगूठों की रेखाएँ घिसने लगी हैं। मोबाइल की स्क्रीन में क़ैद हो चुकी आँखों में इतनी रौशनी ही नहीं बची है कि हम अपने समाज पर घिर आए अंधेरे को पहचान सकें। जिस युवा पीढ़ी के हाथों में देश की बागडोर होनी थी उसके हाथ टच स्क्रीन मोबाइल की अदृश्य बेड़ियों से बंधे हुए हैं। अफ़ीम के नशे से तो देश बच गया लेकिन मोबाइल के असीम नशे से बचने का कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा है।
ट्रेन के आगे लेटने से लेकर अनावश्यक और वीभत्स स्टण्ट करने तक सब कुछ करने की हिम्मत है इस पीढ़ी के पास। फेसबुक लाइव पर आत्महत्या तक देख चुके हम लोग फेमस होने की इस अंतहीन होड़ में अपने वारिसों के स्वर्णिम भविष्य की बलि लिए चले जा रहे हैं। मृत्यु के भयावह वीडियो जब तक गूगल और फेसबुक के आर्टिफिशल इंटेलिजेंस द्वारा अवरुद्ध किए जाते हैं तब तक उन्हें डाउनलोड करके व्हाट्सएप पर वायरल कर दिया जाता है। यूट्यूब का सिस्टम गुप्तांगों की पहचान करने में सक्षम है और ऐसे सभी वीडियो ब्लॉक कर देता है जिनमें स्त्री अथवा पुरुष के गुप्तांगों का स्पष्ट प्रदर्शन हो।
गूगल की इस क्रूरता से लड़ने के लिए हमारे क्रांतिकारी युवाओं ने ऐसे झीने उपाय खोज लिए हैं, जिन्हें गूगल की आँखें न बेंध सकें लेकिन समान्य व्यूअर का मन बहलता रहे। झीना परिधान ख़रीदने की स्थिति न हो तो किसी भी कपड़े पर पानी डालकर अपने फॉलोअर का मन बहलाया जा सकता है।
आप किसी भी धर्म से संबद्ध हों, फेमस होने की भूख ने आपके समाज के युवाओं को अभद्र तथा आपके समाज की युवतियों को अश्लील बनाने की पूरी तैयारी कर ली है। सुहागरात की वीडियो बनाकर वायरल करने तक के क़िस्से सामने आ रहे हैं।
प्रेम, वात्सल्य, संवेदना, करुणा और यहाँ तक कि हास्य भी किसी एक इमोजी का मोहताज होकर रह गया है। प्रतिक्रिया के बहाने आपके सोचने-समझने की क्षमता जीवित न हो जाए इसलिए आपका स्मार्टफोन आपको हर बात का उत्तर देने के लिए प्री-फिक्स वाक्यों का सुझाव दे देता है। हर भाव को व्यक्त करने के लिए इमोजी उपलब्ध है, अब आप अपने चेहरे पर भाव लाए बिना भी अपनी प्रतिक्रिया लिखकर भेज सकते हो।
ज़ुबान कट जाए तो जी सकते हैं लेकिन अंगूठा कट गया तो जीना सम्भव न होगा। दवाई छूट सकती है लेकिन पोस्ट नहीं छूटनी चाहिए। बैंक का ब्याज कम हो जाए पर चैनल का ग्राफ नहीं गिरना चाहिए। चैनल की पॉपुलरिटी कम होने लगे तो किसी को गाली दे दो, किसी की चरित्र-हत्या कर दो, ख़़ुद नंगे हो जाओ या किसी को नंगा कर दो... चैनल चलता रहना चाहिए।
कुछ न कर सकें तो भी ‘केवल फेमस होने की भूख से ओतप्रोत’ अनर्गल, अश्लील, भौंडी, भद्दी, अभद्र वीडियो पोस्ट करनेवालों को ब्लॉक करने की पहल भी कर ली तो इस मरती हुई संस्कृति को कुछ साँसें उधार देनेवालों में आपका नाम भी शामिल होगा।
✍️ चिराग़ जैन
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