Monday, March 27, 2023

सत्य

सत्य के लिए
व्याकरण की नहीं
अंतःकरण की आवश्यकता होती है।

✍️ चिराग़ जैन

Saturday, March 25, 2023

नवरात्रि और स्त्री

चैत्र मास की नवरात्रि मनुष्य जाति में प्रचलित सर्वाधिक विशेष उत्सवों में एक हैं। स्त्री मन की नौ अलग-अलग दशाओं की आराधना ही नहीं अपितु साधना तक की परंपरा का विधान है इस पर्व में। और थोड़ा सा ध्यान से देखें तो देवी के इन नौ रूपों में काव्य के नौ रस भी सहज ही दिखाई दे जाएंगे।
अर्थात्‌ देवी के ये नौ रूप स्त्री की के पूर्ण होने की घोषणा करते हैं। और न केवल स्वयं की पूर्णता अपितु अंततः सिद्धिदात्री के रूप में अर्द्धनारीश्वर की सर्जना करके पुरुष के अधूरेपन को भी पूर्ण करने का उपक्रम!
जीवन में स्त्री की भूमिका को व्यक्त करने का सर्वाधिक सतर्क अवसर है नवरात्रि। करुणा से प्रारंभ हुई यात्रा स्त्रीत्व के विविध आयामों से होकर अर्द्धनारीश्वर रूप में समाहित हो जाती है। यहाँ शक्ति शिव में विलीन नहीं होती, अपितु शिव का अंग बन जाती है। यहाँ स्त्री पुरुष से पूर्णता प्राप्त करके अपने अस्तित्व के अहंकार से भी निर्लिप्त होती है और पुरुष को पूर्णता प्रदान करके पौरुष को भी स्वयंभू होने के अहंकार से मुक्त करती है।
शैलपुत्री से सिद्धिदात्री तक की यह यात्रा आकांक्षा से समर्पण तक की यात्रा है। और विशेष बात यह है कि इस यात्रा का एक भी सोपान अनर्गल नहीं है। इस यात्रा का एक भी चरण अपूज्य नहीं है। सती स्वरूपा शैलपुत्री की कथा से करुणा उपजती है और कठिन तपस्या में काया को कृष करने वालीं ब्रह्मचारिणी आश्चर्य की सर्जना करती है। चंद्रघंटा देवी रौद्र तथा वीर रस की शरणस्थली है तो कुष्मांडा अपनी हँसी से ब्रह्मांड को उत्पन्न करके हास्य का महत्व सार्वजानिक कर देती है। कार्तिकेय को गोदी में लेकर सिंह पर विराजित स्कंदमाता वात्सल्य के शौर्य की द्योतक है और ब्रज की अधिष्ठात्री देवी कात्यायनी शृंगार को पुष्ट करने में सक्षम है। वीभत्स और भयानक रस तक देवी के कालरात्रि स्वरूप में शरण प्राप्त करते हैं। महागौरी, शांतरस की प्रतीक हैं और सिद्धिदात्री भगवद् विषयक रति से भक्तिरस का उद्धरण बन जाती है।
स्त्री के सामर्थ्य का इससे अधिक व्यवस्थित विवरण अन्यत्र दुर्लभ है। आप किसी भी स्त्री का मन टटोलने लगें तो वह उक्त नौ मनोदशाओं में से ही किसी एक में अवस्थित मिलेगी। और यहाँ यह भी जान लेना आवश्यक है कि इन सभी भावों की स्वाभाविकता को स्वीकार करते हुए हमारे यहाँ स्त्री के प्रत्येक स्वरुप को 'देवी' संबोधन ही प्रदान किया गया है।
मैं नवरात्रि की वैज्ञानिकता का चिंतन करता हूँ तो अनुभूत करता हूँ कि स्त्रैण के देवत्व को स्वीकारने वाला ही यह सत्य समझ पाएगा कि स्त्री तो कालरात्रि होकर भी उत्सव की सर्जना करती है!

✍️ चिराग़ जैन

Monday, March 20, 2023

लम्हों का अक्स

न जाने कितने ही लम्हों का अक्स है इसमें
ये मेरी शक़्ल एक दौर की झलक भर है
- चिराग़ जैन

Saturday, March 18, 2023

पतझर का मौसम

कई बार मैंने महसूस किया है कि पतझर का मौसम अन्य किसी भी मौसम से अधिक कवित्व भरा होता है। ऊँचे दरख्तों से सहसा झरते पीले पत्ते मन में अव्यक्त सी रूमानियत भर जाते हैं। डालियाँ थोड़ी खाली ज़रूर होती हैं लेकिन उन्हें बेनूर नहीं कहा जा सकता।
झरते हुए पत्ते सड़कों का सिंगार करने लगते हैं। किसी बाग की पगडण्डी पर जब दो मुसाफिर इन पत्तों को रौंदते हुए आगे बढ़ते हैं तो ऐसा लगता है ज्यों दोनों सहयात्रियों के पांव में प्रकृति ने पाजेब पहना दी हो।
बगीचों में खाली पड़े बेंच भी नीम के सूखे पत्तों से ऐसे लदे रहते हैं मानो उदासी के रीतेपन को अंगूठा दिखाकर अपने भरे होने का जश्न मना रहे हों।
पार्किंग में खड़ी गाड़ियां कदंब, पीपल, चम्पा और सहजन के पत्तों से घुलने-मिलने लगती हैं तो हवा इस मेलजोल को धूल-धूसरित कर डालती है। रोज़ सुबह गाड़ियां साफ़ करने वाले का चिड़चिड़ापन गाड़ियों की फटकार लगाता है तो शरारत में शामिल वृक्ष पत्रवृष्टि करके उस फटकार के विरुद्ध आंदोलन छेड़ देते हैं।
कंटीले झाड़ यकायक हज़ारों रंग के फूलों से खिल उठते हैं। ग्रीष्म की उमस दस्तक देने लगती है और मिट्टी के भीतर सोया जीवन अंकुरित होने लगता है।
दार्शनिक दृष्टि प्रकृति के इस रूप से जीवन का सार बटोरते हुए आनंद की अनुभूति करती है और आशा, हर टूटते पत्ते के पीछे फूटरही कोंपल को निहारने लगती है। सकारात्मकता पीली खरखराहट के भीतर पीपल की लाल-लाल कोंपलों की खनखन सुन लेती है और उत्साह के वेग से बौराई हवा, बांस के खोखलेपन में सरगम टटोलने लगती है।
प्रकृति की इस पतझरी साधना से प्रसन्न होकर आम की डालियों से मंजरियों का सौभाग्य झाँकने लगता है।
जिन्हें वसंत में गीत दिखते हों, वो देखा करें; मुझे तो पतझर का पूरा मौसम मुक्तछंद की कविता जैसा लगता है!

ज़र्द पत्तों की तरह राह सजाऊँगा तेरी
ले मेरे आख़िरी लम्हे भी तेरे नाम हुए

~चिराग़ जैन

Tuesday, March 7, 2023

कुर्सी की खुमारी

सबने भर भर के अपनी पिचकारी, विरोधियों पे मारी
होली का चढ़ा रंग भाइयो!
कहीं लाठी बजी है कहीं गारी, कहीं कुर्सी की खुमारी
सभी का न्यारा ढंग भाइयो!

बच्चन जी ने खूब कहा था मेल कराती मधुशाला
पर सत्ता का कैसा-कैसा खेल कराती मधुशाला
शिक्षामंत्री जैसों को भी फेल कराती मधुशाला
अब जाकर ये ज्ञान हुआ है, जेल कराती मधुशाला
सीबीआई ने आरती उतारी, ईमान के पुजारी
हुए हैं कैसे तंग भाइयों

नई ख़बर चल पड़ी देश में, बात पुरानी भूल गए
उनका अन्ना याद रहा अपना अडवानी भूल गए
इनकी करतूतों में अपनी कारस्तानी भूल गए
मधुशाला का शोर मचा तो लोग अडानी भूल गए
उनकी झाड़ू की तीलियां बेचारी, कमल ने बुहारी
दिल्ली में छिड़ी जंग भाइयो!

मोदी पर आरोप लगाए सीधे-सीधे राहुल ने
संसद तक में घोटालों के पढ़े कसीदे राहुल ने
जिसे छुआ उसके ही तीनों लोक पलीदे राहुल ने
कहीं अडानी के शेयर तो नहीं खरीदे राहुल ने
किसने पंजे की ले ली सुपारी, न नकदी, न उधारी
दुबला हुआ ये अंग भाइयो!

ऐसा रंग खिला है सारे बने फिर रहे बंदर हैं
कोई डर कर बाहर भागे, कोई डरकर अंदर है
सबकी चाबी भरकर बैठा देखे खेल कलंदर है
जनता को बस इतना बोला, महँगा हुआ सिलेंडर है
सुन के जनता की छूटी सिसकारी, पर बोली न बेचारी
ठंडी हुई उमंग भाइयो!

~चिराग़ जैन