क्या कहा, तुम सच कहोगे
और ज़िंदा भी रहोगे
झूठ का चाबुक तुम्हारी खाल खींचेगा समझ लो
और फिर सारा ज़माना आँख मीचेगा समझ लो
ख़ुद नदी ने इस तरह के दाँव सारे रख दिए हैं
नाव जैसे दिख रहे पत्थर किनारे रख दिए हैं
पेड़, जिसकी छाँह के दम पर भिड़े हो धूप से तुम
धूप ने उस पेड़ की जड़ में अंगारे रख दिए हैं
क्या कहा, सच का सहारा
ये महज भ्रम है तुम्हारा
हर सहारा फेर कर मुँह, होंठ भींचेगा समझ लो
और फिर सारा ज़माना आँख मीचेगा समझ लो
दिन दहाड़े हो नहीं सकता भला अंधेर कैसे
मौत पहले आ गई क्यों, न्याय में है देर कैसे
जो सभी की थालियों से, ले गया रोटी उठाकर
सब उसी को दे रहे हैं तोहफ़ों के ढेर कैसे
क्या कहा, दिल की सुनोगे
एक दिन तुम सिर धुनोगे
दिल उम्मीदों का ज़खीरा भी उलीचेगा समझ लो
और फिर सारा ज़माना आँख मीचेगा समझ लो
लूट के हर दृश्य में हम मूकदर्शक हो गए हैं
झूठ की हर कामयाबी के प्रशंसक हो गए हैं
कोई अत्याचार सुनकर दिल दहलता ही नहीं है
आत्माएँ हैं दिवंगत, मन नपुंसक हो गए हैं
क्या कहा विश्वास रखें
आसमां से आस रखें
आसमां ख़ुद तो न बंजर खेत सींचेगा समझ लो
और फिर सारा ज़माना आँख मीचेगा समझ लो
~चिराग़ जैन
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