Friday, August 29, 2025

सृजन सुख

इस तपोवन में सृजन की साधनाएँ चल रही हैं 
ध्वंस से कह दो यहाँ उसके लिए अवसर नहीं है 

मन गहन संवेदना अनुभूत करने में जुटा है 
तन अभी स्वर-व्यंजनों में प्राण भरने में जुटा है 
भाव का उत्कर्ष छूकर नयन खारे हो रहे हैं 
इस सृजन सुख में जगत् के डर किनारे हो रहे हैं 
शब्द से सच का सहज चेहरा उकेरा जा रहा है 
झूठ सुन ले, यह किसी षड्यंत्र की चौसर नहीं है 
ध्वंस से कह दो यहाँ उसके लिए अवसर नहीं है 

इस जगह पर कामना के पर कतरने का नियम है
लाभ से दामन छुड़ाकर कर्म करने का नियम है 
कान सबके दूसरों के आँसुओं की आह पर हैं
ध्यान सबका सृष्टि भर के अप्रतिम उत्साह पर है 
इस धरा पर स्वार्थ को पूरा निचोड़ा जा रहा है 
वासनाओं के लिए यह धाम कुछ हितकर नहीं है
ध्वंस से कह दो यहाँ उसके लिए अवसर नहीं है 

इस समय वात्सल्य का उल्लास-उत्सव चल रहा है 
रच रहे हैं आज नटवर रास; उत्सव चल रहा है 
कृष्ण के आनंद में सुख से भरी हैं कुंजगलियाँ
पीर की काया बड़ी है, संकरी हैं कुंजगलियाँ 
द्वेष से मिलने कन्हैया आएंगे मथुरा स्वयं ही
कंस से कह दो यहाँ उसके लिए अवसर नहीं है 
ध्वंस से कह दो यहाँ उसके लिए अवसर नहीं है 
✍️ चिराग़ जैन 

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