Wednesday, October 29, 2025

मन और गंगा

अपने मन को गंगाजल की तरह निर्मल करने चले थे, गंगाजल को अपने मन की तरह मैला कर आए।

✍️ चिराग़ जैन

Saturday, October 25, 2025

चुनावों से पहले पटाखे डरे हुए हैं

देश भर में दीवाली का माहौल है और बिहार में चुनाव का। हालाँकि राजनीति तो बिहार को ही अयोध्या मानकर अपने राजतिलक की प्रतीक्षा कर रही है।
हर दल स्वयं को भरत माने बैठा है कि सत्ता के रामचंद्र जी आकर उसी से गले लगेंगे। सत्ता के गले पड़ने के लिए हर नेता ने ख़ुद के भरत होने की घोषणा कर रखी है, लेकिन बिहार जानता है कि ये सब भरत, विभीषण बन जाने का सही मौक़ा तलाश रहे हैं।
दरअस्ल चुनाव वह पंचवटी है जिसमें हर रावण, साधु बनकर सीताहरण का अवसर तलाशता फिरता है। मारीच मुद्दों को भटकाने के लिए सीता के सामने कंचनमृग बनकर विचरता है और जो लक्ष्मण, सीता की सुरक्षा के लिए उपस्थित होता है उसे सीता खरी-खोटी सुनाकर ख़ुद अपने से दूर कर देती है।
बहरहाल टिकटों की आतिशबाज़ी हो चुकी है, जिनके पटाखे फुस्स हो गए उन्होंने अपने रॉकेट की बोतल का मुँह पार्टी कार्यालय की ओर मोड़ दिया। जिनको टिकट मिल गई उन्होंने अपने भीतर के बारूद को कपूर बताकर पार्टी की आरती उतारनी शुरू कर दी।
जिन्हें टिकट की सूची में जगह नहीं मिली, उन्होंने अपने-अपने लंकेश को भ्रष्टाचारी घोषित कर दिया है। उधर हर लंकेश मन ही मन सेतुनिर्माण की सूचना से भयभीत है, किंतु अपने चेहरे पर अहंकार का मास्क चिपकाकर अपने विरोधियों को भालू-बंदर सिद्ध करने पर तुला है।
नीतीश कुमार जब भी चुनाव प्रचार पर निकलते हैं तो उन्हें यह स्मरण रहता है कि अपनी सोने जैसी इमेज की लंका में उन्होंने ख़ुद अपनी ही पूँछ से आग लगाई है।
अयोध्या में राम के राजतिलक की तैयारियाँ चल रही हैं और लंका भीषण युद्ध में घिरी हुई है। चुनाव के शोर-शराबे से चैन की नींद सो रहे कुम्भकर्ण भी डिस्टर्ब होकर जाग गए हैं।
कोई अपना मेघनाद दांव पर लगा रहा है तो कोई अपने लक्ष्मण के लिए संजीवनी मंगवा रहा है। कोई पराये वानरों को भी अपना बनाने में जुटा है और कोई अपने भाई को भी लतिया रहा है।
हर पटाखे की बत्ती सुरसुरा रही है, लेकिन हर उम्मीदवार इस आशंका से ग्रस्त है कि कहीं ऐसा न हो कि बत्ती उसके पटाखे की जले और धमाका किसी और के पटाखे में हो जाए।
युद्ध के बाद जिसे सीता मिलेगी उसके घर दीवाली मनेगी और बाकी सब अपने कुनबे के साथ बैठकर अमावस्या मनाएंगे। लेकिन एक बात तय है कि फ़िलहाल देश में दीवाली का माहौल है।

✍️ चिराग़ जैन

Tuesday, October 21, 2025

उजाला

दीपक ने दिखाया-
"मौन रहकर काम करो 
दीर्घायु हो जाएगा 
उजियारा।"

पटाखे ने सिखाया-
"धमाका करो 
शोर मचाओ!
रौशनी से ज़्यादा ज़रूरी है
रौशनी की गूँज।"

मैं समझ गया
कि मानवता 
क्यों रोकना चाहती है युद्ध
क्यों सजाना चाहती है आरती।
✍️ चिराग़ जैन 

Wednesday, October 8, 2025

न्याय के मुँह पर जूता

भारतीय लोकतन्त्र लगभग उस मुकाम पर आ खड़ा हुआ है, जहाँ से ‘लोक’ और ‘तन्त्र’ के मध्य की खाई इतनी चौड़ी हो जाती है कि किसी के लिए भी दोनों ओर पैर रखकर टिके रहना असंभव हो जाए। एक ओर तन्त्र है, जो संविधान की मूल भावना से भटककर अपने-अपने वाद तथा अपने-अपने गुटों के साथ इस हद तक छितरा गया है कि अब इस ताने-बाने का हर ताना अपने बाने पर प्रतिशोध तानकर खड़ा दिखाई देता है।
दूसरी ओर है लोक, जो तन्त्र से नाराज़ रहते हुए भी सदैव तन्त्र की ओर ही आशा भरी निगाहों से देखता है। यह लोक वर्तमान में अपने-अपने ‘सोशल मीडिया समूहों’ द्वारा प्रसारित विचारधाराओं तथा नैतिकताओं का अनुसरण करते-करते इतना अंधा हो गया है कि अराजकता की सीमा-रेखा इसे दिखाई देनी बंद हो गयी है।
एक शिष्ट तथा समृद्ध लोकतन्त्र में तन्त्र, लोक की भावनाओं का सम्मान करते हुए संविधान लागू करवाता है और लोक, तन्त्र की सीमाओं को समझते हुए संविधान लागू करने में सहयोग करता है। किन्तु वर्तमान स्थितियों में कम से कम अपने देश में लोकतन्त्र का यह सौहार्द लगभग धूमिल हो चुका है। न जनता के मन में तन्त्र के लिए कोई सम्मान शेष रह गया है, न ही तन्त्र के मन में जनता के लिए कोई सौहार्द।
विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका नामक तीन शक्तियाँ लोकतन्त्र के ब्रह्मा-विष्णु-महेश के रूप में लोकतन्त्र की समूची सृष्टि को सुचारू रूप से संचालित करती हैं। सृष्टि के संचालनार्थ कभी सुरों को तो कभी असुरों को वरदान दिये जाते रहे हैं। यदि किसी परिस्थितिवश कोई एक शक्ति किसी अयोग्य पात्र को अनुचित वरदान दे भी आई तो शेष दोनों शक्तियों ने अपनी बुद्धिमत्ता से उस वरदान का निदान खोजा और सृष्टि को विनाश से बचा लिया।
चूँकि मूल उद्देश्य सृष्टि का कल्याण ही है, इसलिए यदि किसी वरदान को निष्फल करने का उपाय ढूँढने में किसी शक्ति को विषपान भी करना पड़ा तो वह उससे कभी पीछे नहीं हटा। ऐसी किसी चूक का सुधार करने के लिए किसी शक्ति को अपमान भी झेलना पड़ा तो वह शक्ति उससे पीछे नहीं हटी।मैंेने ‘पुरुषोत्तम’ में दो पंक्तियाँ लिखी हैं-
जब राजसभा पर राजा की निजता हावी हो जाती है
तब राजनीति की चाल अचानक मायावी हो जाती है

किन्तु वर्तमान संदर्भों में लोकतंत्र के इन त्रिदेवों के मध्य ऐसा ईगो-क्लैश जारी है कि देव और दानव अपनी समस्याएँ लेकर इनके पास जाने की बजाय अपने स्तर पर ही लड़-भिड़कर समाधान निकालने में विश्वास रखने लगे हैं।
यह परिस्थिति घातक ही नहीं, विध्वंसक भी है। यह परिस्थिति स्वीकार्य नहीं है। तन्त्र को चाहिए कि वह लोकतन्त्र के अस्तित्व को बचाने के लिए अपने-अपने वर्चस्व की लड़ाई से बाहर निकलें। और लोक को चाहिए कि स्वयं को सर्वशक्तिमान समझने की बजाय तन्त्र की विवशताओं का सम्मान करना सीखे।
हमने विधायिका के चेहरे पर स्याही फेंकी, हमने राजनीति के गाल पर तमाचे मारे, हमने कार्यपालिका के साथ धक्का-मुक्की की, हमने पुलिसवालों का अपमान किया ...यह सब हमेशा से होता रहा है। यद्यपि मैं व्यक्तिगत रूप से इस आचरण को भी अराजकता ही मानता हूँ। किन्तु अब जब हमने न्यायपालिका पर जूता फेंकना सीख लिया है तब मैं अपने ‘लोक’ और ‘तन्त्र’ दोनों के सम्मुख यह निवेदन रखना चाहता हूँ कि अराजकता की आंधी जब आपका घर उजाड़ रही हो तो अपनी जान बचाना स्थिति-सम्मत है, किंतु अराजकता की आंधी के साथ मिलकर अपना घर उजाड़ने में सहयोग करना कोरा पागलपन है।
भारत एक सक्षम देश है। विचारधाराओं की कहासुनी इसके लोकतान्त्रितक स्वरूप को पुष्ट करती है किन्तु खरेपन और बदतमीज़ी के मध्य का अंतर करना यदि हमने अपने युवाओं को नहीं सिखाया तो हमारी यही युवापीढ़ी एक सुंदर देश को गृहयुद्ध की त्रासदी से ग्रस्त होते देखेगी।

✍️ चिराग़ जैन

Sunday, October 5, 2025

सदुपयोग

कमाने में इतने व्यस्त न हो जाना कि ख़र्चने के लिए समय ही न बचे। क्योंकि अपनी ज़िन्दगी के मालिक आप ख़र्चते समय होते हैं; कमाते समय तो श्रमिक होते हैं।

✍️ चिराग़ जैन 

Saturday, October 4, 2025

अहंकार

स्वाभिमान जब दूसरों को नीचा दिखाने का प्रयास करने लगे, तब वह कोरा अभिमान बनकर रह जाता है। 

✍️ चिराग़ जैन 

Thursday, October 2, 2025

दशहरा

भय शत्रु पक्ष का गौण रहे 
अरि की चर्चा जब मौन रहे 
विश्वास स्वयं के शस्त्रों पर 
योद्धा का गहरा होता है 
तब विजय सुनिश्चित होती है 
बस तभी दशहरा होता है 

✍️ चिराग़ जैन