जिनकी धमनियों में डोलता था ज्वालामुखी
मात-भारती के क्रांति-कोष कहाँ खो गए
राष्ट्र-स्वाभिमान वाली मदिरा का पान कर
होते थे जो लोग मदहोश; कहाँ खो गए
जिस सिंह-गर्जना से बाजुएँ फड़कतीं थीं
इन्क़लाब वाले जय-घोष कहाँ खो गए
देश को आज़ादी की अमोल सम्पदा थमा के
नेताजी सुभाष चन्द बोस कहाँ खो गए
© चिराग़ जैन
गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Thursday, January 23, 2003
Monday, January 13, 2003
जीवन को कुछ यूँ जियो
बात यहीं से हो शुरू, और यहीं हो बन्द
जीवन को कुछ यूँ जियो, जैसे दोहा छन्द
✍️ चिराग़ जैन
जीवन को कुछ यूँ जियो, जैसे दोहा छन्द
✍️ चिराग़ जैन
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पद्य
Friday, January 3, 2003
मज़ा उनको भी आता है
अजब सी बात होती है मुहब्बत के तराने में
क़तल दर क़त्ल होते हैं सनम के मुस्कुराने में
मज़ा हमको भी आता है मज़ा उनको भी आता है
उन्हें नज़रें चुराने में हमें नज़रें मिलाने में
✍️ चिराग़ जैन
क़तल दर क़त्ल होते हैं सनम के मुस्कुराने में
मज़ा हमको भी आता है मज़ा उनको भी आता है
उन्हें नज़रें चुराने में हमें नज़रें मिलाने में
✍️ चिराग़ जैन
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