गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Friday, January 3, 2003
मज़ा उनको भी आता है
अजब सी बात होती है मुहब्बत के तराने में क़तल दर क़त्ल होते हैं सनम के मुस्कुराने में मज़ा हमको भी आता है मज़ा उनको भी आता है उन्हें नज़रें चुराने में हमें नज़रें मिलाने में
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