गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Friday, January 23, 2004
वतन के नाम
अगर दुश्मन करे आग़ाज़, हम अंजाम लिख देंगे लहू के रंग से इतिहास में संग्राम लिख देंगे हमारी ज़िंदगी पर तो वतन का नाम लिखा है अब अपनी मौत भी अपने वतन के नाम लिख देंगे
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