Monday, September 6, 2004

आख़िर क्यों माँ?

माँ
दुनिया तुझको अक्सर
ममता की इक मूरत कहती है
मैं भी तेरे त्याग, नेह और वात्सल्य का
क़द्रदान हूँ।

लेकिन माँ
इतना बतला दे
तब वो सारी नेह-दिग्धता
भीतर का सारा वात्सल्य
कहाँ दफ़्न कर दिया था तूने
जब तूने
इक सच्चे दिल से
दोनों हाथ बलैयाँ लेकर
अपने रब से दुआ करी थी
इक बचपन के मर जाने की...

जब तूने चाहा था
तेरा राजा बेटा
जल्दी-जल्दी बड़ा हो जाए

कहाँ मर गई थी
तब
तेरी सारी ममता?

© चिराग़ जैन

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