हर कोई ख़ुद को यहाँ कुछ ख़ास बतलाता मिला
हर किसी में ढूंढने पर आदमी यकसा मिला
आज के इस दौर में आदाब की क़ीमत कहाँ
वो क़लंदर हो गया जो सबको ठुकराता मिला
हर दफ़ा इक बेक़रारी उनसे मिलने की रही
हर दफ़ा ऐसा लगा, इस बार भी बेज़ा मिला
जिसने उम्मीदें रखीं और क़ोशिशें हरगिज़ न कीं
उसको अन्ज़ामे-सफ़र रुसवाई का तोहफ़ा मिला
रात जब सोया तो हमबिस्तर रहा उनका ख़याल
सुब्ह जब जागा तो होठों पर कोई बोसा मिला
© चिराग़ जैन
No comments:
Post a Comment