Saturday, October 23, 2004

दशहरा

दुष्टों का संहार कर, संतों पर कर गर्व
यही सीख सिखला रहा, हमें दशहरा पर्व

© चिराग़ जैन

Saturday, October 9, 2004

गोरी

कारे-कारे कजरारे नैन तोरे प्यारे-प्यारे
गीले-गीले लागत हैं नदिया के कूल से
सौंधी-सौंधी खुसबू महकती है केसन में
मानो अभी नहा के आई हो गोरी धूल से
मस्तानी की दीवानी मुस्कान देख लें तो
रोम-रोम खिले गुलदाऊदी के फूल से
मीठी-मीठी बोली मो से बोले तो मिठाई लागे
औरन से बोले तब चुभते हैं सूल से

© चिराग़ जैन

Wednesday, October 6, 2004

प्यार वाला अहसास

प्यार वाला एक अहसास जब से जगा है
अँखियों से भेद खोलती है मेरी ज़िन्दगी
हर घड़ी हर पल दिन-रैन बिन चैन
उस ही का नाम बोलती है मेरी ज़िन्दगी
अपना तो दिल भूल आई किसी आँचल में
अब बावरी-सी डोलती है मेरी ज़िन्दगी
मथुरा में बन बनवारी बैठ गई और
बृज की हवा टटोलती है मेरी ज़िन्दगी

© चिराग़ जैन