Saturday, October 9, 2004

गोरी

कारे-कारे कजरारे नैन तोरे प्यारे-प्यारे
गीले-गीले लागत हैं नदिया के कूल से
सौंधी-सौंधी खुसबू महकती है केसन में
मानो अभी नहा के आई हो गोरी धूल से
मस्तानी की दीवानी मुस्कान देख लें तो
रोम-रोम खिले गुलदाऊदी के फूल से
मीठी-मीठी बोली मो से बोले तो मिठाई लागे
औरन से बोले तब चुभते हैं सूल से

© चिराग़ जैन

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