Tuesday, March 22, 2005

आसरा

लड़खड़ाकर गिरे नहीं होते
गर तेरे आसरे नहीं होते
कमनसीबी का दौर है वरना
हम भी इतने बुरे नहीं होते

© चिराग़ जैन

Saturday, March 19, 2005

दर्द की दास्तान

दर्द की दास्तान सुन लेना
ख़ुद-ब-ख़ुद साहिबान सुन लेना
होंठ मेरे न कुछ कहेंगे मगर
आँसुओं का बयान सुन लेना

© चिराग़ जैन


Friday, March 11, 2005

अहसास

तुम छोड़ जाओगे- ये अहसास खल रहा है
सीने में दर्द का इक लावा पिघल रहा है
कुछ इस तरह से हर इक लम्हा निकल रहा है
हाथों से जैसे कोई रेशम फिसल रहा है

© चिराग़ जैन

Thursday, March 3, 2005

परिवर्तन

जब से हम करने लगे बात-बात में जंग
तब से फीके पड़ गए त्यौहारों के रंग
धुआँ-धुआँ सा रह गया दीपों का त्यौहार
शोर-शराबा बन गया होली का हुड़दंग 

© चिराग़ जैन