एक पल सूरज छिपा और फिर उजाला हो गया
लेकिन इसमें चांद का किरदार काला हो गया
साज़िशें सूरज निगलने की रची थीं चांद ने
पर वो अपनी साज़िशों का ख़ुद निवाला हो गया
© चिराग़ जैन
गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Monday, April 18, 2005
Tuesday, April 12, 2005
वो शालीन पल
हाँ, गुज़ारे थे कभी दो-तीन पल
कुछ हसीं, कुछ शोख़, कुछ रंगीन पल
हर तरह की वासना से हीन पल
अब कहाँ मिलते हैं वो शालीन पल
भोग, लिप्सा, मोह के संगीन पल
कब किसे दे पाए हैं तस्कीन पल
आपका आना, ठहरना, लौटना
इक मुक़म्मल हादसा थे तीन पल
साथ हो तुम तो मुझे लगता है ज्यों
हो गए हैं सब मिरे आधीन पल
कँपकँपाते होंठ, ऑंखों में हया
किस तरह भूलेंगे ये रंगीन पल
दिल में रोशन रख उमीदों के ‘चिराग़’
छू न पाएंगे तुझे ग़मगीन पल
© चिराग़ जैन
कुछ हसीं, कुछ शोख़, कुछ रंगीन पल
हर तरह की वासना से हीन पल
अब कहाँ मिलते हैं वो शालीन पल
भोग, लिप्सा, मोह के संगीन पल
कब किसे दे पाए हैं तस्कीन पल
आपका आना, ठहरना, लौटना
इक मुक़म्मल हादसा थे तीन पल
साथ हो तुम तो मुझे लगता है ज्यों
हो गए हैं सब मिरे आधीन पल
कँपकँपाते होंठ, ऑंखों में हया
किस तरह भूलेंगे ये रंगीन पल
दिल में रोशन रख उमीदों के ‘चिराग़’
छू न पाएंगे तुझे ग़मगीन पल
© चिराग़ जैन
Sunday, April 3, 2005
सितारों की तरह
हो गई है ज़िन्दगी अपनी सितारों की तरह
देखते हैं लोग भी अब तो नज़ारों की तरह
जो चले थे काम करने कामगारों की तरह
वो उनींदे से खड़े हैं अब कतारों की तरह
सब शिकारी की तरह घर से निकलते हैं मगर
सब फँसे मिलते शिकंजे में शिकारों की तरह
आपके हालात की बेइंतहा मज़बूरियाँ
और मेरे दहकते अरमां अंगारों की तरह
हर ग़ज़ल मानी बदल लेती है मौक़ा देखकर
शेर हैं सब बेवफ़ाओं के इशारों की तरह
© चिराग़ जैन
देखते हैं लोग भी अब तो नज़ारों की तरह
जो चले थे काम करने कामगारों की तरह
वो उनींदे से खड़े हैं अब कतारों की तरह
सब शिकारी की तरह घर से निकलते हैं मगर
सब फँसे मिलते शिकंजे में शिकारों की तरह
आपके हालात की बेइंतहा मज़बूरियाँ
और मेरे दहकते अरमां अंगारों की तरह
हर ग़ज़ल मानी बदल लेती है मौक़ा देखकर
शेर हैं सब बेवफ़ाओं के इशारों की तरह
© चिराग़ जैन
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