मैं अगर ख़ुद अपना सच बतलाऊँ तो भी मैं ग़लत
और अगर हर झूठ को सह जाऊँ तो भी मैं ग़लत
ग़र तुम्हारे वार से मर जाऊँ तो भी मैं ग़लत
और अगर ख़ुद को बचाना चाहूँ तो भी मैं ग़लत
बेअबद हूँ मैं अगर बेहतर करूँ कुछ आपसे
और गर बेहतर नहीं कर पाऊँ तो भी मैं ग़लत
बेवजह अपशब्द कहने की मुझे आदत नहीं
पर तुम्हारे शब्द ही दोहराऊँ तो भी मैं ग़लत
तुमने हर संबंध को व्यवसाय कर डाला मगर
मैं कहीं व्यवसाय करने जाऊँ तो भी मैं ग़लत
मेरा मुन्सिफ़ सारी बातें जानकर भी मौन है
और मैं बिन बात चुप हो जाऊँ तो भी मैं ग़लत
आंधियों का सामना कर लूँ तो बेगैरत ‘चिराग़’
और गर चुपचाप मैं बुझ जाऊँ तो भी मैं ग़लत
© चिराग़ जैन
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