गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Friday, January 13, 2006
दिखावा
मुहब्बत में सनम के बिन कोई मंज़र नहीं दिखता सिवा दिलबर कोई भीतर कोई बाहर नहीं दिखता किसी को हर तरफ़ महबूब ही महसूस होता है किसी को दूर जाकर भी ख़ुदा का घर नहीं दिखता
No comments:
Post a Comment