Friday, January 13, 2006

दिखावा

मुहब्बत में सनम के बिन कोई मंज़र नहीं दिखता
सिवा दिलबर कोई भीतर कोई बाहर नहीं दिखता
किसी को हर तरफ़ महबूब ही महसूस होता है
किसी को दूर जाकर भी ख़ुदा का घर नहीं दिखता

© चिराग़ जैन

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