Saturday, May 12, 2007

काव्य

जिन शिखरों को हो पिघलने से ऐतराज़
उन्हें कभी नदी-सा बहाव नहीं मिलता
अनुभूति अनकही रहती हैं जब तक
अक्षरों से उनका स्वभाव नहीं मिलता
जोड़-तोड़ करने से कविता तो बनती है
किन्तु ऐसी कविता में भाव नहीं मिलता
काव्य तो है ऐसी पीड़ाओं की प्रतिध्वनि जहाँ
टीस उठती है पर घाव नहीं मिलता

© चिराग़ जैन

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