सच बोलने की भी जो हिम्मत जुटा न सके
ऐसी निरी खोखली जवानी किस काम की
शोषण को देख नहीं लहू में उबाल आए
बोलो ऐसी ख़ून की रवानी किस काम की
लाज, प्रेम, करुणा की नमी यदि सूख जाए
भला फिर आँख बिन पानी किस काम की
जिसके निधन पे न चार नैन नम हुए
ऐसे आदमी की ज़िन्दगानी किस काम की
© चिराग़ जैन
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