कोई महज ईमान का जज्बा लिए जिया
कोई फ़रेब-ओ-झूठ का मलबा लिए जिया
टूटन, घुटन, ग़ुबार, अदावत, सफ़ाइयाँ
इक शख्स सच के नाम पे क्या-क्या लिए जिया
जब तक मुझे ग़ुनाह का मौक़ा न था नसीब
तब तक मैं बेग़ुनाही का दावा लिए जिया
था बेलिबास अपनी नज़र में हर एक शख्स
दुनिया के दिखावे को लबादा लिए जिया
रोशन रहे चराग़ उसी की मज़ार पर
ताज़िन्दगी जो दिल में उजाला लिए जिया
इक वो है जिसे दौलते-शोहरत मिली सदा
इक मैं हूँ ज़मीरी का असासा लिए जिया
तुम पास थे या दूर थे, इसका मलाल क्या
मैं तो लबों पे नाम तुम्हारा लिए जिया
© चिराग़ जैन
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