चांदनी से रात बतियाने सहेली आ गयी
कुछ मुंडेरों के मुक़द्दर में चमेली आ गयी
पैर भी सुस्ता लिये, आँखों ने भी दम ले लिया
ज़िंदगी की राह में, दिल की हवेली आ गई
झाँकता है हर कोई ऐसे दिल-ए-नाशाद में
जैसे आंगन में कोई दुल्हन नवेली आ गई
बोझ कंधों का उतर कर गिर गया जाने कहाँ
जब मेरे सिर पे बुज़ुर्गों की हथेली आ गई
तीरगी का ख़ौफ़, सन्नाटे की दहशत थी मगर
इक किरण सूरज की धरती पर अकेली आ गयी
© चिराग़ जैन
गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Saturday, August 25, 2007
Friday, August 24, 2007
बिटिया
शादी का जोड़ा चढ़ा, सजे सोलहों साज
इक छोटी-सी लाडली, बड़ी हुई है आज
इक छोटी-सी लाडली, बड़ी हुई है आज
विदा समय बाबुल कहे, जोड़े दोनों हाथ
मेरी लाज बंधी हुई, बिटिया तेरे साथ
मेरी लाज बंधी हुई, बिटिया तेरे साथ
बिन कारण ताने सहे, बिन मतलब संत्रास
पर उसने तोड़ा नहीं, बाबुल का विश्वास
पर उसने तोड़ा नहीं, बाबुल का विश्वास
बाबुल तेरी देहरी, जब से छूटी हाय।
तब से मन की बात बस, मन ही में रह जाय
तब से मन की बात बस, मन ही में रह जाय
दो नावों में ही रहें, बिटिया के दो पाँव
ना ये अपना घर हुआ, ना वो अपना गाँव
ना ये अपना घर हुआ, ना वो अपना गाँव
सहना, घुलना, सिसकना, सुनना बात तमाम
बिटिया के ससुराल में, कितने सारे काम
बिटिया के ससुराल में, कितने सारे काम
अब तू करना सीख ले, सब के संग निबाह
माँ ऑंखें भर-भर कहे, भरियो नहीं कराह
माँ ऑंखें भर-भर कहे, भरियो नहीं कराह
चिड़िया जब दुलहिन बनी, पेड़ हुआ कंगाल
सूनी-सूनी सी लगे, झूले बिन हर डाल
© चिराग़ जैन
सूनी-सूनी सी लगे, झूले बिन हर डाल
© चिराग़ जैन
Tuesday, August 14, 2007
तिरंगा
अपना तिरंगा एक परचम ही नहीं है
भावनाओं की बहार-सी है तीन रंग में
छोटे-छोटे बालकों के अधरों पे बिखरी जो
वही एक पावन हँसी है तीन रंग में
प्रेम, त्याग, एकता, अखण्डता, समानता से
ओत-प्रोत आत्मा बसी है तीन रंग में
खादी वाले मोटे रेशों का ही ताना-बाना नहीं
भारत की एकता कसी है तीन रंग में
© चिराग़ जैन
भावनाओं की बहार-सी है तीन रंग में
छोटे-छोटे बालकों के अधरों पे बिखरी जो
वही एक पावन हँसी है तीन रंग में
प्रेम, त्याग, एकता, अखण्डता, समानता से
ओत-प्रोत आत्मा बसी है तीन रंग में
खादी वाले मोटे रेशों का ही ताना-बाना नहीं
भारत की एकता कसी है तीन रंग में
© चिराग़ जैन
Thursday, August 9, 2007
सावन
घन, पंछी, बरखा करें, गर्जन, कलरव, सोर
हृदय मयूरा झूमिहै, ज्यों सावन में मोर
जब मेघन का नेह जल, बरसत है चहुँ ओर
इस प्रेमी मन भीगता, उत बिरहन की कोर
© चिराग़ जैन
हृदय मयूरा झूमिहै, ज्यों सावन में मोर
जब मेघन का नेह जल, बरसत है चहुँ ओर
इस प्रेमी मन भीगता, उत बिरहन की कोर
© चिराग़ जैन
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