Wednesday, October 3, 2007

ख़ुद से मुख़ातिब

कितना आसान है
दुनिया को ग़लत ठहराना

थोड़ा चालाक रवैया
ज़रा-सी अय्यारी
झूठ को सच बना देने का क़रामाती गुर
थोड़ी कज़बहसी
थोड़ी ज़िद्द
ज़रा-सी लफ़्फ़ाज़ी
तेज़ आवाज़ औ’ मुद्दों को घुमाने का हुनर
चन्द सिक्कों से ख़रीदे हुए दो-चार गवाह
और इक इन्तहा बेअदबी की
ढिठाई की....

....कितना मुश्क़िल है मगर
ख़ुद से मुख़ातिब होना!

© चिराग़ जैन

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