तो फिर इंसान के मन से कभी बचपन नहीं जाता
कोई कितना भी ख़ुद को सख्त दिल कहता रहे लेकिन
कभी यादों से पहले प्यार का सावन नहीं जाता
भले ही मिट गया दीवार का नामो-निशां भी अब
मगर मेरे ज़ेह्न से वो बँटा आंगन नहीं जाता
चुभन ही क्यों बहुत लम्बे समय तक याद रहती है
मिरे मन से वो इक पल का परायापन नहीं जाता
किसी के रूठ जाने पर जो पीछे छूट जाते हैं
बहुत दिन तक उन अपनों का अकेलापन नहीं जाता
© चिराग़ जैन
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