Monday, April 21, 2008

इक मुक़म्मल बयान

प्यार कब बेज़ुबान होता है
लफ्ज़ बिन दास्तान होता है
आँख तक बोलने लगें इसमें
इक मुक़म्मल बयान होता है

© चिराग़ जैन

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