Friday, July 31, 2009

सपनों का कॅनवास

मैं खुली आँखों से
एक सपना देखता था
अक्सर।

बनाता था इक तस्वीर
अपनी ख़्वाहिशों की।
न जाने कब उभर आया
एक मुकम्मल इंसान
मेरे मन के कॅनवास पर।

न जाने क्यों
मैंने रख दिया
अपना दिल
बिना सोचे-समझे
इस इंसान के सीने में

...तुम
केवल एक रिश्ता नहीं हो
मेरे लिए
तुम मेरे सपनों का
कॅनवास हो।

© चिराग़ जैन

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