Tuesday, August 11, 2009

शब्द शिव हैं

शब्द 
शिव हैं। 

जब कभी
बहती है भावना
उद्विग्न हो
मन के भीतर से

तो उलझा लेते हैं उसे
व्याकरण की जटाओं में।
रोक देते हैं
उसका सहज प्रवाह।
सीमित कर देते हैं
उसकी क्षमताएँ।

कविता वेग है
आवेग है
उद्वेग है।

वो तो
शब्दों ने उलझा लिया
वरना,
बहा ले जाती
सृष्टि के
सारे कचरे को।

शब्द ब्रह्म नहीं हैं,
शब्द शिव हैं।

© चिराग़ जैन

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