किसी की ज़िन्दगी अपने ठिकाने तक नहीं पहुँची
किसी की मौत ही वादा निभाने तक नहीं पहुँची
बुज़ुर्गों की क़दमबोसी मेरी फितरत रही लेकिन
मेरी हसरत कभी उनके ‘सिराने तक नहीं पहुँची
ज़माने के लिए जो शख्स घुट-घुट कर मरा आख़िर
ख़बर उस शख्स की ज़ालिम ज़माने तक नहीं पहुँची
हवा के साथ उसकी ख़ुश्बुएँ आती रहीं लेकिन
कभी वो शय हमारे आशियाने तक नहीं पहँची
लहर से जूझना ही क्यों लिखा था मेरी क़िस्मत में
मेरे किश्ती कभी भी क्यों मुहाने तक नहीं पहुँची
© चिराग़ जैन
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