मिरे भारत के हर ज़र्रे में है संघर्ष की ख़ुश्बू
हर इक संघर्ष से उठती है पावन हर्ष की ख़ुश्बू
जो अपने मुल्क़ की मिट्टी से कोसों दूर बैठे हैं
अभी भूले नहीं वो लोग भारतवर्ष की ख़ुश्बू
© चिराग़ जैन
गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Wednesday, September 22, 2010
Monday, September 20, 2010
आपसी सहयोग की भावना
ख़बर 1-राजधानी में जामा मस्जिद के निकट भड़की आतंक की आग।
ख़बर 2- हरियाणा ने यमुना में 6,53,503 क्यूसेक पानी छोड़ा, बाढ़ का ख़तरा।
टिप्पणी- इसको कहते हैं आपसी सहयोग की भावना!
© चिराग़ जैन
ख़बर 2- हरियाणा ने यमुना में 6,53,503 क्यूसेक पानी छोड़ा, बाढ़ का ख़तरा।
टिप्पणी- इसको कहते हैं आपसी सहयोग की भावना!
© चिराग़ जैन
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Saturday, September 18, 2010
सॉफ़्टवेअर करप्ट हो जाए
अब किसी के लिखे ख़त जलाने की ज़रूरत नहीं
है, बस मोबाइल का सॉफ़्टवेअर करप्ट हो जाए तो यादों के सारे अवशेष स्वतः ही ब्रह्मलीन हो जाते हैं!
© चिराग़ जैन
है, बस मोबाइल का सॉफ़्टवेअर करप्ट हो जाए तो यादों के सारे अवशेष स्वतः ही ब्रह्मलीन हो जाते हैं!
© चिराग़ जैन
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Sunday, September 12, 2010
जमुना-कवि संवाद
कल मैंने जमुना से पूछा-
“जमुना रानी!
क्यों करती हो यूँ मनमानी
कहाँ से लाई हो इतना
विध्वंसक पानी!”
जमुना बोली-
“ये पानी?
ये पानी न बारिश का है
न नदियों-नालों का है
ये पानी तो दिल्ली के सरकारी घोटालों का है।
ये जो मेरे तटबंधों की
चढ़ती हुई जवानी है
ये सारा सरकारी आँखों से
उतरा हुआ पानी है।"
“जमुना रानी!
क्यों करती हो यूँ मनमानी
कहाँ से लाई हो इतना
विध्वंसक पानी!”
जमुना बोली-
“ये पानी?
ये पानी न बारिश का है
न नदियों-नालों का है
ये पानी तो दिल्ली के सरकारी घोटालों का है।
ये जो मेरे तटबंधों की
चढ़ती हुई जवानी है
ये सारा सरकारी आँखों से
उतरा हुआ पानी है।"
© चिराग़ जैन
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