Sunday, September 12, 2010

जमुना-कवि संवाद

कल मैंने जमुना से पूछा-
“जमुना रानी!
क्यों करती हो यूँ मनमानी
कहाँ से लाई हो इतना
विध्वंसक पानी!”

जमुना बोली-
“ये पानी?
ये पानी न बारिश का है
न नदियों-नालों का है
ये पानी तो दिल्ली के सरकारी घोटालों का है।

ये जो मेरे तटबंधों की
चढ़ती हुई जवानी है
ये सारा सरकारी आँखों से
उतरा हुआ पानी है।"

© चिराग़ जैन

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