निराशा तो मेरी आंखों को नम होने नहीं देगी
मगर उम्मीद मुझको चैन से सोने नहीं देगी
बहुत आसां नहीं होगा मेरे सपनों का सच होना
बहुत मुश्क़िल मेरी हिम्मत इसे होने नहीं देगी
© चिराग़ जैन
गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Monday, February 27, 2012
Friday, February 24, 2012
वायरस
जब से
डाउनलोड की है
तुम्हारे नाम की फाइल
बार-बार हैंग होता है
दिल का सिस्टम
...शायद
कोई वायरस था
फाइल में।
जिसने सबसे पहले
डी-एक्टिवेट किया
ब्रेन का एंटी-वायरस
और फिर
करप्ट कर दिया
ऑपरेटिंग सिस्टम
डाउनलोड की है
तुम्हारे नाम की फाइल
बार-बार हैंग होता है
दिल का सिस्टम
...शायद
कोई वायरस था
फाइल में।
जिसने सबसे पहले
डी-एक्टिवेट किया
ब्रेन का एंटी-वायरस
और फिर
करप्ट कर दिया
ऑपरेटिंग सिस्टम
स्लो कर दी
रैम भी!
...शायद
इंस्टाॅल करनी पड़ेगी
नई विंडो!
© चिराग़ जैन
रैम भी!
...शायद
इंस्टाॅल करनी पड़ेगी
नई विंडो!
© चिराग़ जैन
Wednesday, February 22, 2012
अधूरे ख़्वाब
हर रात
मैं बुनता था इक ख़्वाब
और फिर
उसको अधूरा छोड़
चुपचाप सो जाता था
कि कभी तुम्हारे साथ
साकार करूंगा
ख़्वाब में उभरा
ये ख़ूबसूरत लम्हा...
एक-एक करके
जाने कितने ही सपने
इकट्ठे हो गए
मेरे तकिए के नीचे।
आज जब सोने लगा मैं
बिना संजोए कोई ख़्वाब
तो अचानक
मैं बुनता था इक ख़्वाब
और फिर
उसको अधूरा छोड़
चुपचाप सो जाता था
कि कभी तुम्हारे साथ
साकार करूंगा
ख़्वाब में उभरा
ये ख़ूबसूरत लम्हा...
एक-एक करके
जाने कितने ही सपने
इकट्ठे हो गए
मेरे तकिए के नीचे।
आज जब सोने लगा मैं
बिना संजोए कोई ख़्वाब
तो अचानक
मेरे सामने खड़े हो गए
सैंकड़ों अधूरे ख़्वाब
सैंकड़ों अधूरे ख़्वाब
तकिए के नीचे से निकलकर।
सबकी भंगिमा में मौजूद था
एक ही प्रश्न-
"अब हमारा क्या होगा?"
मैंने कहा-
"काश ये निर्णय
मेरे वश में होता!"
© चिराग़ जैन
सबकी भंगिमा में मौजूद था
एक ही प्रश्न-
"अब हमारा क्या होगा?"
मैंने कहा-
"काश ये निर्णय
मेरे वश में होता!"
© चिराग़ जैन
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मन तो गोमुख है
Friday, February 17, 2012
टोटका
बहुत उपजाऊ है
मेरे दिल की मिट्टी।
पनप जाता है
हर बीज
आसानी से।
बहुत आसानी से
फूट पड़ता है अंकुर,
बहुत आसानी से
द्विदल होता है बीज,
...लाल-लाल कोंपलें
......ताज़ा हरापन।
कभी ओस नहाई पत्तियाँ
तो कभी
गुपचुप बतियाती
डालियाँ।
कुछ पौधों पर
आ जाता है
बौर भी...
...लेकिन किसी डाल ने
कभी नहीं किया
फल का शृंगार...!
...शायद
कोई टोटका कर देता है
मेरी हरियाली पर!
© चिराग़ जैन
मेरे दिल की मिट्टी।
पनप जाता है
हर बीज
आसानी से।
बहुत आसानी से
फूट पड़ता है अंकुर,
बहुत आसानी से
द्विदल होता है बीज,
...लाल-लाल कोंपलें
......ताज़ा हरापन।
कभी ओस नहाई पत्तियाँ
तो कभी
गुपचुप बतियाती
डालियाँ।
कुछ पौधों पर
आ जाता है
बौर भी...
...लेकिन किसी डाल ने
कभी नहीं किया
फल का शृंगार...!
...शायद
कोई टोटका कर देता है
मेरी हरियाली पर!
© चिराग़ जैन
Thursday, February 9, 2012
मुहब्बत की कहानी
कोई इन्सान दिल के हाथ जब लाचार होता है
तो उसकी ज़िन्दगी का रास्ता दुश्वार होता है
मुहब्बत की कहानी में फ़क़त चेहरे बदलते हैं
वही किस्सा, वही इक वाक़या हर बार होता है
© चिराग़ जैन
तो उसकी ज़िन्दगी का रास्ता दुश्वार होता है
मुहब्बत की कहानी में फ़क़त चेहरे बदलते हैं
वही किस्सा, वही इक वाक़या हर बार होता है
© चिराग़ जैन
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