बहुत उपजाऊ है
मेरे दिल की मिट्टी।
पनप जाता है
हर बीज
आसानी से।
बहुत आसानी से
फूट पड़ता है अंकुर,
बहुत आसानी से
द्विदल होता है बीज,
...लाल-लाल कोंपलें
......ताज़ा हरापन।
कभी ओस नहाई पत्तियाँ
तो कभी
गुपचुप बतियाती
डालियाँ।
कुछ पौधों पर
आ जाता है
बौर भी...
...लेकिन किसी डाल ने
कभी नहीं किया
फल का शृंगार...!
...शायद
कोई टोटका कर देता है
मेरी हरियाली पर!
© चिराग़ जैन
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