गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Friday, April 6, 2012
वंदना के गीत
जश्न में खोने से पहले दो घड़ी ख़ुद को जगा लें उत्सवों की देहरी पर देवताओं को मना लें मुस्कुराहट दिव्य हो जाएगी गर दो पल ठहर कर उल्लसित होने से पहले वंदना के गीत गा लें
No comments:
Post a Comment