Tuesday, August 21, 2012

महंगाई का फायदा

एक मंत्री जी ने कहा है कि महंगाई से मैं बहुत ख़ुश हूँ, क्योंकि इससे किसानों को फ़ायदा होगा। यह परोपकार का ऐसा आयाम है जिसके लिये इतिहास हमेशा बेनी जी का ऋणी रहेगा। सब लोग सरकार की आलोचना करते हैं (उनको चाहिये कि वे सरकार से डरें, नहीं तो सरकार उनका फ़ेसबुक अकाउंट ब्लॉक करवा देगी) लेकिन इस समय कांग्रेस सरकार ने जो उपक्रम आरंभ किये हैं उनसे आश्वस्त हुआ जा सकता है कि या तो भविष्य आएगा ही नहीं, और आया तो उसको स्वर्णिम पॉलिश कर के आना होगा। वरना उसको इंडिया का वीज़ा ही नहीं दिया जायेगा। अब भविष्य कोई पाकिस्तानी घुसपैंठिया तो है नहीं, जो सुरंग बनाकर घुस आए। 

ख़ैर, सरकार ने महंगाई बढ़ाकर न केवल किसानों की समस्याओं का हल निकाला है, बल्कि और भी बहुत से पेशों का भला किया है। महंगाई के कारण लोग भूख से परेशान हो जाएंगे, लूट-खसोट करने के लिये उनको अभिप्रेरणा मिलेगी। इससे समाज में अपराध बढ़ेंगे तो पुलिसवालों का भला होगा। कुछ लोग जेब बचाने के लिये स्वास्थ्य को ताक़ पर रख देंगे, इससे डॉक्टरों के बच्चे पल जाएंगे। जो लोग अपने बच्चों को भूखा मरते नहीं देख सकते, वे आत्महत्या के लिये प्रेरित होंगे। इससे श्मशान के पंडितों का परिवार चलेगा। 

आत्महत्या की घटनाएँ बढ़ीं तो मीडिया में शोर मचेगा। इससे पत्रकारों का पेट पलेगा। ...इस समय सरकार पालनहार की भूमिका अदा कर रही है। आज तक किसी सरकार ने समाज के इन वर्गों की चिंता नहीं की। सरकार के इन प्रयासों की प्रशंसा करने के स्थान पर लोग माननीय बेनी जी की आलोचना कर रहे हैं।

मैं कृतज्ञता अर्पित करता हूँ सरकार के प्रति और अनुरोध करता हूँ कि कृपया मेरा फेसबुक अकाउंट ब्लॉक न करवाएँ, मैं इसी प्रकार समय-समय पर सरकार की चापलूसी करता रहूंगा। मैं जानता हूँ ‘सरकार’! आपकी मर्ज़ी के बिना 8 साल से देश का प्रधानमंत्री कुछ नहीं बोल पाया, तो मेरी क्या औक़ात है!

यदि फिर भी सरकार चाहे तो पूरा फेसबुक ही बंद करवा सकती है, वैसे भी जिस जनता के पेट भरने के भी लाले पड़ने वाले हैं वो बोलने या चिल्लाने के क़ाबिल ही कहाँ बचेगी। और यदि बीपीएल कार्ड पर फ्री के मोबाइल वगैरा की सुविधा लेकर बोल भी लेगी, तो उसकी सुनेगा कौन।

© चिराग़ जैन

Sunday, August 12, 2012

सिर्फ़ हंगामा

आज स्वर्गीय दुष्यंत कुमार पर बहुत गुस्सा आ रहा है। उनका एक शेर पूरे हंगामे की जड़ बन गया है। पहले कोई भी विवाद खड़ा करने से पहले हर आदमी को यह भय रहता था कि मुझे कलेसी समझा जाएगा। लेकिन अब दुष्यंत ने सब कलेसियों को सुविधा दे दी है कि जब के कलेस करो और अंत में दो मिसरे बोल कर सारे आरोपों का पिंडदान कर डालो-

सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मक़सद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए

इस शेर को पूरा देश उसी भाव से सुनता है जिस भाव से द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर के मुख से अश्वत्थामा की मृत्यु का समाचार सुना था। ‘अश्वत्थामा हतोयतः...’ सुनने के बाद पूरे देश के कान बंद हो जाते हैं और यह समझ ही नहीं पाते कि अगले मिसरे में अगला किसी कोशिश की बात कर रहा है।

फ़ेसबुकियों से लेकर संसदियों तक; जंतर-मंतर से लेकर रामलीला मैदान तक हर जगह अवचेतन में गुलाम अली का हारमोनियम टुनटुनाने लगता है- हंगामा है क्यों बरपा...। शाम के प्राइम टाइम बुलेटिन में हर न्यूज़ चैनल पर चार-पाँच कलेसी सादर आमंत्रित किए जाते हैं कि लीजिए, जो क़सर संसद में या रैली में अधूरी रह गई हो, उसको पूरा करो। सबको लाकर काॅलर माइक लगा दिया जाता है। फिर एंकर बहुत सभ्य तरीक़े से सबकी राय जानना चाहता है। जब सब राय दे देते हैं तब बहस शुरू होती है कि विषय क्या हो। बहस कई बार गति पकड़ने का प्रयास करती है लेकिन हर बार एंकर स्पीड ब्रेकर लगाकर प्रश्न उछालता है कि पहले विषय तय कर लिया जाए। और फिर बहस उस विषय से भटक जाती है, जो कभी था ही नहीं। सब एक साथ हंगामा खड़ा करने लगते हैं। बेचारा एंकर सोमनाथ स्टाइल में मीरा कुमार की स्क्रिप्ट पढ़ता रहता है- बैठ जाइए, उनको बोलने दीजिए, कृपया शांत हो जाइए।’

बड़ी मुश्क़िल से सभी इस बात पर सहमत होते हैं कि उस बेचारे को भी सुन लिया जाए जो पिछले बीस मिनिट से हमने जुड़ चुका है। जैसे ही उससे बोलने को कहा जाता है, ऐन वक़्त पर उसके कान में लगा ईअर फोन निकल जाता है और उससे हमारा संपर्क टूट जाता है। इस मौक़े का लाभ उठाकर एंकर तुरंत बताता है कि वक़्त हो चला है एक ब्रेक का।

मैं भी विषय से उतना भटक चुका हूँ, जितना आवश्यक था। सो मैं दो पंक्तियों के साथ अपनी बात समाप्त करना चाहता हूँ- 

सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मक़सद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए

© चिराग़ जैन

Saturday, August 11, 2012

बाक़ी सब ठीक है

असम जल रहा है, मुम्बई में हिंसा है, दिल्ली में हा-हाकार है …मध्य प्रदेश में बाढ़ है, राजस्थान में सूखा, सीमापार खड़े कुछ हिंदू हिंदुस्तान आने को तरस रहे हैं, हरियाणा का एक "मंत्री" फ़रार है …संसद में हंगामा हो रहा है। मीडिया भी अब चिल्ला-चिल्ला कर बाज आ चुका है। कुछ दिन राष्ट्रपति की तलाश का ड्रामा चलता है, फिर उसी हंगामे के बीच एक वफ़ादार राष्ट्रपति बनाकर बोलती बंद कर दी जाती है, कुछ लोग जंतर मंतर पर
बैठते हैं कि देश बदलेंगे, फिर कुछ दिन बाद ये कहकर उठ जाते हैं कि हम बदल गये हैं। फिर कुछ दिन उपराष्ट्रपति चुनाव का वैसा ही हल्ला मचता है, फिर किसी को उपराष्ट्रपति बनाकर बोलती बंद कर दी जाती है। बहुत दिन बाद आडवाणी जी के बयान से सोनिया जी बौखलाती हुई दिखाई दीं, लेकिन लोकसभा की कार्रवाई से इसको निकाल दिया गया और देश एक महत्वपूर्ण ड्रामा देखने से वंचित रह गया। उत्तर प्रदेश के एक मंत्री जी फ़िल्मी स्टाइल में ख़ुद को निर्दोष साबित करने के लिये इस्तीफ़ा देकर फ़रार हो गये। यू पी में करोड़ों रुपया ख़र्च कर के मायावती सरकार ने कुछ ज़िलों के नाम महापुरुषों के नाम पर रखे, अब अखिलेश सरकार ने मायावती की उस भूल को सुधारने के लिये अरबों ख़र्च करने का मन बनाया है।
किसी की किसी बात को लेकर कोई जवाबदेही नहीं है। सरकार और विपक्ष, जो पहले एक साथ चीखते थे, अब अनुशासित हो गये हैं। अब जब सरकार बोलती है तो विपक्ष सुनता है और जब विपक्ष बोलता है तो सरकार। मीडिया में सबकी फ़ुटेज का पर्सेंटेज फ़िक्स हो गया है। उस स्लैब में जिसकी जो चाहे वो बकवास करे।
टाइम बाउंड आमरण अनशन किया जा रहा है, मतलब अनशन करने वाला आश्वस्त है कि इतने समय में वो मर ही जायेगा। इमोशनल कहानी में कॉमेडी के सीन घुसाये जा रहे हैं।
बाकी सब ठीक है।
पूरा देश शंकर जी की बारात हो गया है। जिसका जो मन कर रहा है वो वैसा कर रहा है। हालाँकि कोई भी कुछ नहीं कर रहा है। कोई किसी से सेम्पल मांगते-मांगते ख़ुद एग्ज़ांपल बन गया, तो किसी का सबूत मंत्रालय में रखी फ़ाइल की तरह जल गया।
ऐसा लग रहा है कि हम सब किसी ख़राब फ़िल्म के मूक दर्शक हैं। डायरेक्टर का जब जैसा मन होता है वैसी कहानी डाल देता है, कहानी कहीं है ही नहीं, सिर्फ़ कथाएँ हैं, जिनको सुनाते वक़्त भविष्य हम सब पर ठहाका मार कर हँसेगा …वैसे इस बात की भी कोई गारंटी नहीं इस कहानी को सुनने के लिये कोई भविष्य में बचेगा भी या नहीं!

© चिराग़ जैन

Monday, August 6, 2012

ग़ज़लों की सादा बस्तियों को चूम आता हूँ

नज़र की शोख़ियों को, मस्तियों को चूम आता हूँ
जे़ह्न में तैरती कुछ कश्तियों को चूम आता हूँ
ठहाकों के मुहल्ले में सजी महफ़िल से उठकर मैं
हसीं ग़ज़लों की सादा बस्तियों को चूम आता हूँ

© चिराग़ जैन