Friday, August 30, 2013

पाठ्य पुस्तक से मुठभेड़

दिल्ली विश्वविद्यालय में नये पाठ्यक्रम लागू हो गये हैं। चार साल वाला। कल स्नातक स्तर की हिंदी की पाठ्य पुस्तक से मुठभेड़ हो गयी। कहने लगी मैं साहित्य की पुस्तक हूँ। सुनकर मेरे भीतर के साहित्यिक ने कनखियों से एकाध पृष्ठ उघाड़ दिये। ये इत्तेफ़ाक़ ही था कि जो पृष्ठ खुला उस पर शाहरुख़ ख़ान का चित्र था, रा-वन वाला। मेरे साहित्यकार को कुछ शंका सी हुई। अगला पृष्ठ खोला, तो वो बोला- बलम पिचकारी जो तूने मुझे मारी तो सीधी-सादी लड़की शराबी हो गयी। ...मैंने चारों तरफ़ नज़र घुमाई, शायद कहीं तारांकित लिखा हो- ‘शराब पीना सेहत के लिये हानिकारक है, इस पुस्तक में सम्मिलित कोई भी कवि शराब का सेवन या उसका प्रचार नहीं करता।’ ...लेकिन अफ़सोस ऐसा कुछ नहीं दिखा। मेरा साहित्यकार आगे बढ़ा -‘जींस पहन के जो मैंने मारे ठुमके, तो लट्टू पड़ोसन की भाभी हो गयी। साहित्यकार कल्पना के कक्ष में खो गया। एक प्रोफ़ेसर काले गॉगल्स लगाये, मिनि स्कर्ट और शॉर्ट टॉप पहनकर ईअरफोन कान में लगाये विवेकानंद स्टेच्यू के आगे से गुज़रते हुए हिंदी विभाग में प्रवेश करती है। 

40 लड़कों की कक्षा में प्रवेश करते ही हर विद्यार्थी से कड़ाई से पूछती है, आप में से जिसके पड़ोस में कोई पड़ोसन न हो बाहर हो जाओ। 10 लड़के बाहर चले जाते हैं। फिर पूछती है जिसकी पड़ोसन की भाभी न हो वो बाहर चला जाये। 20 विद्यार्थी फिर बाहर चले गये। 10 शेष बचे। अध्यापिका ने प्रत्येक छात्र से पड़ोसन के अंगोपांग की जानकारियां जुटानी शुरू ही की थी कि टोकने की आदत से मजबूर एक विद्यार्थी ने प्रश्न किया- मैडम ये बलम पिचकारी क्या होती है। मैडम ने साहित्य के सम्मान के लिये तुरंत बलम और पिचकारी के मध्य अल्पविराम लगाया। घर जाकर अध्यापिका अल्पविराम को राखी बांधेगी। यदि अल्पविराम समय पर न आता तो वह छात्र समास रूपी दुश्शासन का प्रयोग कर अध्यापिका का चीर, कोष्ठक में मिनी स्कर्ट, हरण कर लेता। 

अभी एक संकट टला ही था कि दूसरा प्रश्न आ गया, मैडम प्रस्तुत पाठ में पड़ोसन की भाभी ही लट्टू क्यों हो रही है, पड़ोसन क्यों नहीं। क्या कवि अपनी प्रेयसी की भाभी पर फ्लैट है? क्या कवि शादीशुदा महिलाओं पर अधिक रीझता है। 

अध्यापिका प्रश्न का उत्तर तलाशती इससे पूर्व ही एक और प्रश्न उछला- मैडम, यदि यह कविता किसी कवयित्री द्वारा रचित है तो इसमें लट्टू होने का कर्म पड़ोसन के भैया को करना चाहिये, भाभी को नहीं। और अगर ये कविता कोई कवि लिख रहा है तो बलम की पिचकारी से आहत होकर वह उन्मादी क्यों हुआ जाता है। क्या यह कविता समलैंगिकता का समर्थन करती है?

कक्षा के प्रश्नों से घबराकर अध्यापिका कक्षा से और साहित्यकार कल्पना से बाहर आ गये। पलटते-पलटते एक पृष्ठ पर तुलसी, कबीर दिखाई दिये। आरक्षित से। उपेक्षित से। साहित्यकार ने क्षोभ में भरकर कहा- ये पुस्तक साहित्य की नहीं है। पुस्तक ने इतराते हुए प्रेमचंद का निबंध दिखाया... चुप रहो। इसमें प्रेमचंद हैं, जो प्रेमचंद के साथ छप गया, वो सब साहित्य है। 

जाओ अपना रास्ता नापो। मत मानो मुझे साहित्य। छात्र तो मानेंगे ही, 75 में से 55 नम्बर मास्टर की दया पर मिलेंगे। नहीं मानेंगे तो फैल करवा दूंगी चारों सालों कू!

© चिराग़ जैन

Thursday, August 29, 2013

डर लगता है

सूप पर
अनाज उछालती माँ
डाँट देती थी मुझे
जब मैं कोशिश करता था
उछलते अनाज को
छू लेने की।

डाल पर बैठी चिड़िया
फुर्र से उड़ जाती थी
जब मैं उचकता था
उसे छूने के लिए।

कई बार मन करता है
तुमको छूने का।

लेकिन डर लगता है
कहीं तुम अनाज न निकलो!
कहीं तुम चिड़िया न निकलो!

© चिराग़ जैन

Friday, August 16, 2013

सियासत पनप रही है

नसीहतें अनसुनी रहेंगी, यही रवायत पनप रही है
पुरानी आफ़त तो टल गई पर नई मुसीबत पनप रही है

कहीं तिज़ारत, कहीं ज़रूरत, कहीं पे वहशत पनप रही है
अमां हटाओ भी दौरे-नौ में कहाँ शराफ़त पनप रही है

इधर मेरे घर में एक नन्हीं, हसीं नज़ाक़त पनप रही है
उधर मेरे मन में सुर्ख़ियों की तमाम दहशत पनप रही है

किसी की मजबूरियों के घुटने कभी टिकें तो ये याद रखना
जहाँ दबाया था हसरतों को वहीं बग़ावत पनप रही है

वो एक हिंदू, ये एक मुस्लिम, वो इसका दुश्मन, ये उसका दुश्मन
इसी तरह के फ़िज़ूल जुमलों पे अब सियासत पनप रही है

हरेक सच को बयान कर दें, पलट के रख दें हरेक बाज़ी
तुम्हारी मजबूरियों के दम पर, हमारी हिम्मत पनप रही है

जो एक आदत-सी हो गई है, तुम्हें हमारी ख़ुशामदों की
तुम्हारी आदत की आड़ लेकर, हमारी चाहत पनप रही है

बहुत दिनों तक संभाले रखी, तो ये मरासिम को लील लेगी
अभी मिटा दो दिमाग़ो-दिल से, अगर शिक़ायत पनप रही है


© चिराग़ जैन

Saturday, August 10, 2013

लफंडर-लबाड़ी

चाहती है अगर प्यार जारी रहे
मैं लफ़ंडर रहूँ, तू लबाड़ी रहे
एक ही शर्त पर है ये मुमकिन अगर
मैं कुँआरा रहूँ, तू कुँआरी रहे

घर-गृहस्थी के पचड़ों से बचकर रहें
तो मुहब्बत का नुक़सान टल जाएगा
हो गई चिल्ल-पौं बालकों की शुरू
तो हमारा दिवाला निकल जाएगा
आशिकी के लिए है ज़रूरी बहुत
पाँव हल्के रहें, जेब भारी रहे

जब कभी कोई मुझको छिछोरा कहे
तू तभी थोड़ी-थोड़ी छिछोरी बने
मैं तेरे प्यार में कुछ जुगाड़ू बनूं
तू मेरे इश्क़ में कुछ टपोरी बने
मैं मुहल्ले में रिक्शा चलाता फिरूं
तू मेरी फिक्स सिंगल सवारी रहे

लड़कियां देखकर सोचते हैं सभी
इनसे शादी करें या मुहब्बत करें
साल में एक दो गिफ़्ट देते रहें
या कि हर रोज़ की मोल आफ़त करें
पाव भर बेर से काम चल जाए तो
क्या ज़रूरी है आंगन में झाड़ी रहे

हो ज़रूरी अगर ब्याह करना तुझे
तो किसी और के नाम हो जाइयो
मैं जमूरे सा चुपचाप तकता रहूँ
तू बंदरिया सी गुमनाम हो जाइयो
फिर मेरी डुगडुगी पर मटक लीजियो
जब कभी घर से बाहर मदारी रहे

प्रेमिका के लिए मुस्कुराते रहे
और पत्नी से हम नकचढ़े हो गए
वाइफ ने टच किया, बाल चिपके रहे
प्रेमिका ने छुआ तो खड़े हो गए
प्रेमिका एक एडवांस पेमेंट है
और पत्नी हमेशा उधारी रहे

© चिराग़ जैन