Thursday, August 14, 2014

दीया आज़ादी का

दीपक जलते दीवाली के, दीपक जलते हैं यादों के
रौशनी बिखरती कातिक में, उत्सव मनते हैं भादो के
घर भर में ज्योति पसरती है, शादी-ब्याहों में टेलों में
जमकर आतिशबाज़ी होती, गर विजय मिली हो खेलों में
लेकिन हम मौन बिताते हैं, उत्सव अपनी आज़ादी का
आँगन में नहीं लगाते हैं इक दिव्य तिरंगा खादी का
दुनिया भर को मालूम चले मतलब अपनी आबादी का
हर आँगन में इस बार जले इक दीया अगर आज़ादी का

© चिराग़ जैन

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