गत दो दशक से मेरी लेखनी विविध विधाओं में सृजन कर रही है। अपने लिखे को व्यवस्थित रूप से सहेजने की बेचैनी ही इस ब्लाॅग की आधारशिला है। समसामयिक विषयों पर की गई टिप्पणी से लेकर पौराणिक संदर्भों तक की गई समस्त रचनाएँ इस ब्लाॅग पर उपलब्ध हो रही हैं। मैं अनवरत अपनी डायरियाँ खंगालते हुए इस ब्लाॅग पर अपनी प्रत्येक रचना प्रकाशित करने हेतु प्रयासरत हूँ। आपकी प्रतिक्रिया मेरा पाथेय है।
Wednesday, August 20, 2014
तलाश
रेल की खिड़की में बैठी तुम अपनी हथेलियों में तलाशती रह गईं मुझको और प्रेम सरसों सा फूलता रहा धरती की हथेलियों में पड़ी लोहे की लम्बी लकीरों के दोनों ओर दूर तक ...बहुत दूर तक।
No comments:
Post a Comment