Monday, January 26, 2015

सारे जहाँ से अच्छा

अद्भुत है ये देश। ढेर सारी कमियों के बावजूद सबसे अच्छा। राजनैतिक विसंगतियों के तमाम झरोखों में से जब संस्कृति की रौशनी झांकती है तो इस मिट्टी की जड़ों का एहसास सीने को चौड़ा कर देता है। साम्प्रदायिकता की आग पर स्वार्थ कीरोटियाँ सेंकने वाले चाहें तो सीख सकते हैं कि ईद पर सेवइयाँ बेचने वाला बाबा दीवाली पर खील-बताशे बेच कर अपने मन में फुलझड़ियाँ छोड़ लेता है।गणतंत्र दिवस पर जब संस्कृति और शौर्य क़दम ताल करता है तो कश्मीर से कन्याकुमारी तक पूरे देश का मस्तक दमक उठता है। घूमर की ताल पर थाप देने वाली उँगलियों को कभी कत्थक की थाप देने से परहेज करते नहीं देखा गया। बांसुरी से लेकर अलगोजा तक; हमारी नानियों ने सबकी कहानियां गढ़कर बचपन को पूरे चाव से सुनाई हैं। हिंदी ने कभी उकारान्त होकर राम गाये तो कभी मीठी मिस्री से लिपट माखन चुराते कन्हाई रचे। बल्लीमारान की गली क़ासिम को भी उतने ही अदब से याद किया गया जितने सम्मान से चित्तौडगढ़ के मीरा मंदिर को। अशोक को महान कहकर हमने अकबर की भी महानता को बराबर सम्मान दिया। कुछ पल के लिए इस देश की हर व्यक्तिवाचक संज्ञा का जाति, लिंग अथवा अन्य सभी प्रकार के विशेषणों से विच्छेद करके देखता हूँ तो भीतर एक तराना गूँज उठता है-
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा... 

© चिराग़ जैन

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