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Thursday, January 1, 2015
नींव की कमज़ोरी
साफ़-साफ़ दिख रही है नींव की कमज़ोरी दीवार की लीपापोती छुपा नहीं पा रही है भीतर की दरारें। एक भय-सा झाँक रहा है झरोखों से! अंधेरा ही अंधेरा छा गया है रौशनदान के आरपार
सब समझ आ रहा है कि क्यों लटक गया है कंगूरों का चेहरा!
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