जंतर मंतर पर गजेन्द्र सिंह फांसी झूल गया। मीडिया की मौज हो गई। गजेन्द्र सिंह पर हर चैनल ने पीएचडी कर मारी। वहां वसुंधरा क्यों नहीं गई। वहां अरविन्द केजरीवाल क्यों चुप रहा। किसने उसकी चिता जलाई। कौन उसकी बेटी है। किसको उसने फोन किया। सारी पड़ताल दो दिन में हो गई।
उसको न्याय मिलने ही वाला था कि नेपाल की धरती हिल गई। नेपाल में तबाही मच गई और मीडिया में हाहाकार।गजेन्द्र के परिवार की गुहार इस हाहाकार में दब गई। उन अनाथ बच्चों को स्टूडियो से बाहर फ़ेंक कर मीडिया नेपाली हो गया। कौन सी बिल्डिंग गिरी। जब बिल्डिंग गिरी तो लोग कैसे भागे। किस मंदिर में चमत्कार हुआ। किस मलबे में कितने लोग फंसे हैं। सारी रिसर्च ही गई। अभी मलबा पूरी तरह हटा भी नहीं था कि रामदेव की पुत्रजीवक वटी का मुद्दा मीडिया की मशीन में पेल दिया गया। सुबह से शाम तक हर चैनल पर रामदेव और त्यागी जी। उस दवाई के नाम में क्या गुनाह था ये स्पष्ट होता इससे पहले मीडिया को कुमार विश्वास मिल गया। मिडिया ने त्यागी जी को त्याग कर कुमार विश्वास और लड़की का दामन थाम लिया। दोनों पक्ष ये कहते रहे कि हमारे बीच कोई सम्बन्ध नहीं हुए।लेकिन मीडिया ने दो दिन तक कुमार विश्वास का चीरहरण किया। कुमार की इज़्ज़त पूरी तरह लुटती इससे पहले सल्लू मियां पर फैसला आ गया। बेचारे सलमान को जिसने केवल एक फुटपथिये को कुचला था। उसको इतनी भारी सज़ा हो गई। अदालत की इस बर्बरता पर मीडिया ने सवाल उठाए। पूरे देश में दुःख की लहर दौड़ गई। अब देखना ये है कि अगला नंबर किसका है।
हमारा देश इतने जागरूक मीडिया से धन्य है। वो और देश होंगे जिनकी मिडिया को मुद्दों की तलाश होती है। हमारे न्यूज़ चैनल तो जिस पर बात करने लगें, वही मुद्दा हो जाता है। कभी-कभी तो लगता है कि मुद्दे खुद न्यूज़ चैनल के बाहर लाइन बनाकर खड़े हैं। हालात ये है कि किसी भी मुद्दे को दो दिन से ज़्यादा का स्लॉट नहीं मिल पा रहा। इतनी व्यस्तता के बीच भी संसद की चर्चा, भूखे को रोटी, सरकारी भ्रष्टाचार, गर्मी से झुलसते लोग, हवा में बढ़ता प्रदूषण और जीवन स्तर की बेहतरी को दरकिनार कर हमारा मीडिया ऐसे बिना बात के मुद्दों पर पूरी ऊर्जा से चीखता चिल्लाता है; इससे ज़्यादा महानता और क्या होगी।
© चिराग़ जैन
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