लीजिये जनाब! रोना-पीटना बंद करो, सल्लू भाई पर आता हुआ संकट उसी तरह टल गया जैसे धरती की ओर बढ़ता हुआ उल्कापिंड अचानक न्यूज़ चैनल देखकर अपनी दिशा बदल लेता है। सेशन कोर्ट ने तेरह साल तक न्याय को वनवास दिये रखा और हाईकोर्ट ने तीस हज़ार रुपये की बड़ी रक़म वसूल कर न्याय को अज्ञातवास में भेज दिया। सारा प्रकरण देख कर पहली बार महसूस हुआ कि न्याय की मूर्ति की आँखों पर बंधी पट्टी की ख़रीद में कोई बड़ी धांधली हुई है। उस पट्टी की क्वालिटी में एक ख़ामी है। तेज़ चमक वाले चेहरों की रोशनी पट्टी में से पार होकर न्याय की देवी की आँखें चुंधिया सकती है।
क़ानून इतना भी अंधा नहीं है जितना लगता है। क़ानून टीवी चैनल देख सकता है।अभिनय जगत् के श्रेष्ठ कलाकारों की आँखों में बिना ग्लेसरिन के उतरे आँसू देख सकता है। सल्लू मिया के ऊपर लगे बॉलीवुड के सैंकड़ो करोड़ रुपैये देख सकता है। क़ानून समझता है कि जब अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में रुपये की क़ीमत लगातार गिर रही हो ऐसे में ढाई सौ करोड़ रुपये को ठंडे बस्ते में डाल देना देश के हित में नहीं है। क़ानून हत्या के अपराधी के घर से अदालत तक सड़कों पर उठ रहे सलमान ज़िंदाबाद के नारों की गूंज सुन सकता है।
लेकिन क़ानून निष्पक्ष है। क़ानून जानता है कि अभिजीत के बयान का सलमान के केस से कोई लेना-देना नहीं है। क़ानून यह भी जानता है कि उस रात फ़ुटपाथ पर सो रहे लोगों में एक आदमी की जान चली गई और बाक़ी चार की बच गई। चूँकि बच जाने वाले लोगों की संख्या मर जाने वाले लोगों की संख्या से कम है इसलिये लोकतंत्रात्मक दृष्टिकोण से सल्लू मियां के हत्यारे होने को कुल एक वोट मिला है, लेकिन गाड़ी के नीचे आने के बावज़ूद ज़िंदा बचा लेने वाले मसीहा होने को चार वोट मिले हैं।
लेकिन क़ानून पारदर्शी है और भावनाओं को नहीं समझता। क़ानून व्यवहारिक है। वह यह समझता है कि किसी भले आदमी से कोई ग़लती हो गई तो तेरह साल तक उसके द्वारा सबूतों और गवाहों से की गई छेड़ख़ानी सहज मानवीय व्यवहार का हिस्सा है। चूँकि हर किसी को अपना बचाव करने का अधिकार है।
क़ानून प्रभावित नहीं होता। इसलिये इस फ़ैसले पर होने वाली आलोचनाओं से क़ानून को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा। क्योंकि न्याय की मूर्ति के कान इस समय सलमान ख़ान ज़िंदाबाद के नारे सुनने में व्यस्त हैं। और जब क़ानून इन आलोचनाओं पर संज्ञान लेगा तो भी विचलित नहीं होगा। वह अदालत की अवमानना और न्यायालय के विशेषाधिकार के दम पर नोटिस ज़ारी करेगा। क्योंकि क़ानून कुछ भी जानता हो या न जानता हो पर वह क़ानून तो जानता ही है।
-चिराग़ जैन
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