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Sunday, June 14, 2015
ज़िंदगी है चार पहरों की तरह
कुल मिलाकर ज़िंदगी है चार पहरों की तरह हर किसी का वक़्त चढ़ता है दुपहरों की तरह
सांझ को दुल्हन सी सजती है सभी की ज़िंदगी और फिर सूरज ढलक जाता है चेहरों की तरह
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