यही हाल रहा तो कुछ दिन बाद अरविन्द भैया अपने मफलर को साड़ी के पल्लू की तरह पतलून में खोंस कर हाथ हिला हिला कर बोलेंगे- "हाय या के कीड़े पड़ें.....याको नास जाय... मेरौ जीनौ हराम कार्राखो है। जाय आफत पररई है। जे ना मानैगा ...छोरा दामोदर का। हाय लगेगी मेरी हाय... मेरी आत्मान तैं हाय निकलेगी रे....!"
© चिराग़ जैन
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