चलो, इस राह चलकर देखते हैं
कहाँ बदले मुकद्दर, देखते हैं
कहीं मुस्कान तो लब पर नहीं है
मेरे आँसू छलककर देखते हैं
हमें तो दिख रहा है कंठ नीला
यहाँ सब सिर्फ शंकर देखते हैं
हमारे हौसलों की थाह मत लो
कहाँ तक है समंदर, देखते हैं
अगर हँसता हुआ मिल जाऊँ उनको
तो जिगरी यार जलकर देखते हैं
अगर मुस्कान से परहेज रखूँ
तो फिर बच्चे सहम कर देखते हैं
अभी मजबूरियों की चल रही है
इरादे आह भरकर देखते हैं
यही एहसास दिल को खुश रखे है
वो हमको छुप-छुपाकर देखते हैं
© चिराग़ जैन
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