हवा में
ज़हर घुलता जा रहा है।
जो आग के ज़रिए
हवाओं में कहीं ग़ुम हो गई थी;
वही अब साँस के ज़रिए
हमारे फेफड़ों में जम रही है।
हमारी साँस की सरगम सुनाती धौंकनी से
अचानक आह की आवाज़ आने लग गई है।
कोई तो है
जो अपने साथ बीती ज़्यादती का
हमारी नस्ल से दिन-रात बदला ले रहा है।
कोई तो है
जो हमसे ही हमारी कौम को बर्बाद करने के लिए
बारूद-असला ले रहा है।
कोई तो है जिसे मालूम है
कमरे को ठंडा कर रहे
हर देवता का दूसरा चेहरा
बड़ा भभका उठाता है।
कोई तो है जिसे एहसास है
हर आँख में पलती
हर इक अय्याश हसरत की
कोई मजलूम ही क़ीमत चुकाता है।
हमारा ढोंग खुलता जा रहा है
हवा में ज़हर घुलता जा रहा है।
सुना है
पेड़ बादल को बुलाने के लिए
बाँहें उठाते थे।
सुना है प्यास से थक कर परिंदे
बारिशों की मिन्नतों के गीत गाते थे।
सुना है
सर्दियों में खेत कोहरे की रिजाई ओढ़ लेते थे।
सुना है
फूल गुलशन में टहलती तितलियों को
रोक लेने की सुबह से होड़ लेते थे।
सुना है
एक मुद्दत से किसी भी फूल से मिलने
कोई तितली नहीं आई।
सुना है
एक अरसे से
सिमटते जा रहे तालाब पर
बदली नहीं छाई।
सुना है
पूस की ठंडी ठिठुरती रात में भी
खेत नँगा सो रहा है।
सुना है कोयलें सब ग़ैर-हाज़िर हो चुकी हैं;
सुना है बांझ होते जा रहे फलदार पेड़ों की
पुराना बाग़ लाशें ढो रहा है।
सुना है
हर नदी नाराज़ हैं।
हवाएं रोज़ बेइज़्ज़त हुई हैं।
ज़मीं के ख़ूबसूरत जिस्म पर
तेज़ाब फेंका है हमारी हसरतों ने।
सुना है पेड़ अब इस बेअदब इंसान को
छाया नहीं देते।
जिन्हें हम पूजते थे देवता कहकर
बहुत बेफ़िक्र थे हम लोग जिस आगोश में रहकर
सुकूँ देता था जिनका साथ, जिनका संग
बहुत गहरा था जो इक दोस्ती का रंग
हवा में ज़हर घुलता जा रहा है।
सुना है
पेड़ बादल को बुलाने के लिए
बाँहें उठाते थे।
सुना है प्यास से थक कर परिंदे
बारिशों की मिन्नतों के गीत गाते थे।
सुना है
सर्दियों में खेत कोहरे की रिजाई ओढ़ लेते थे।
सुना है
फूल गुलशन में टहलती तितलियों को
रोक लेने की सुबह से होड़ लेते थे।
सुना है
एक मुद्दत से किसी भी फूल से मिलने
कोई तितली नहीं आई।
सुना है
एक अरसे से
सिमटते जा रहे तालाब पर
बदली नहीं छाई।
सुना है
पूस की ठंडी ठिठुरती रात में भी
खेत नँगा सो रहा है।
सुना है कोयलें सब ग़ैर-हाज़िर हो चुकी हैं;
सुना है बांझ होते जा रहे फलदार पेड़ों की
पुराना बाग़ लाशें ढो रहा है।
सुना है
हर नदी नाराज़ हैं।
हवाएं रोज़ बेइज़्ज़त हुई हैं।
ज़मीं के ख़ूबसूरत जिस्म पर
तेज़ाब फेंका है हमारी हसरतों ने।
सुना है पेड़ अब इस बेअदब इंसान को
छाया नहीं देते।
जिन्हें हम पूजते थे देवता कहकर
बहुत बेफ़िक्र थे हम लोग जिस आगोश में रहकर
सुकूँ देता था जिनका साथ, जिनका संग
बहुत गहरा था जो इक दोस्ती का रंग
वो गहरा रंग धुलता जा रहा है
हवा में ज़हर घुलता जा रहा है
© चिराग़ जैन
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