Monday, December 24, 2018

दो हज़ार अठारह विदा

दो हज़ार अठारह बीता देकर कितने सारे घाव
कालखंड की चौसर पर ज्यों मौत जीतती जाए दांव 
साल अभी प्रारम्भ हुआ था काल दिलों को छील गया 
दूर देश में एक हादसा श्रीदेवी को लील गया 
अभिनय के घर मातम छाया, इस ग़म की सिसकी थमती 
उससे पहले विदा हो गए श्री जयेंद्र जी सरस्वती 
अगला सदमा लगा अचानक सूफी की कव्वाली को 
विदा किया हमने धरती से प्यारेलाल वडाली को 
तभी काव्य की गलियों की ख़ुशियों को पाला मार गया 
हिंदी कविता का इक ध्रुवतारा टूटा केदार गया 
काल साथ ले चला अचानक शोलों के सहभागी को 
काव्य जगत ने खोया अपने बालकवि बैरागी को 
इसके बाद कारवां गुज़रा गीतों के जादूगर का 
धरती का नीरज बन बैठा अमर सितारा अम्बर का 
राजनीति की गलियाँ रोईं दक्षिण के स्वर क्लान्त हुए 
चेन्नई की धरती के बेटे करुणानिधि जी शांत हुए 
जाने क्या विधि ने ठानी थी, कैसी थी उसकी मर्ज़ी 
पाँच दिनों के बाद बिछुड़ गए सोमनाथ जी चटर्जी 
ऐसा लगता था ईश्वर ने सारे गौहर बीन लिए 
जब निर्मम होकर भारत से अटल बिहारी छीन लिए 
एक एक कर हमसे छीने कितने जगमग दीप गए 
पत्रकारिता जी भर रोई जब नैयर कुलदीप गए 
कड़वे प्रवचन मौन हो गए, ओझल हुआ अमिट आलोक 
सारे संत जगत पर छाया संत तरुण सागर का शोक 
फिर नारायण दत्त तिवारी, और खुराना लाल मदन 
इतने सारे हीरे खोए, घायल है अब अंतर्मन 
ये आँसू का साल रहा है अब कोई संघर्ष न हो 
ईश्वर से बस यही दुआ है अगला वर्ष हर्ष का हो 

© चिराग़ जैन

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