Sunday, December 8, 2019

देख ले इक बार तो मुड़कर

छोड़ कर घर-द्वार मत जा
आस के उस पार मत जा
राग मत बैराग से कर
नेह को यूँ हार मत जा
घर बिना तेरे यकायक हो गया खंडहर
देख ले इक बार तो मुड़कर

विश्व को रौशन बनाने के लिए सूरज बहुत है 
बाहरी दीवार पर उजियार की सजधज बहुत है 
घर समूचा डूब जाता है अंधेरे में तेरे बिन 
इस अभागी देहरी को सिर्फ़ तेरी रज बहुत है 
घर में अंधियारा भरा है, दीप है बाहर 
देख ले इक बार तो मुड़कर 

उर्मिला को सौख्य भी दे, राम को परमार्थ भी दे 
विश्व को सर्वार्थ भी दे, राधिका को स्वार्थ भी दे 
सृष्टि का करुणेश तू, घर के लिए करुणा बचा ले 
सौंप दे जग को तथागत, नीड़ को सिद्धार्थ भी दे 
तू हुआ मधुमास, घर पतझर 
देख ले इक बार तो मुड़कर 

© चिराग़ जैन

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