हिंदी पढ़ने वाली लड़की
हिंदी पढ़ने वाली लड़की
सीधी-सादी, सहज-सलोनी, कभी न तड़की-भड़की
बातों का भावार्थ समझ लेती है वो झटपट से
उसके सरल वाक्य अपराजित रहते सदा कपट से
स्वाद बढ़ाते हैं बातों का उसके बोले व्यंजन
देवनागरी की अक्षर लिपटे रहते हैं लट से
अनुपम है अनुभूति भाव की
सक्षम है अभिव्यक्ति भाव की
कविता पढ़-पढ़ स्वयं हो गई कविता किसी सुगढ़ की
नियम छोड़ कर रोमन हो गई हैं जब शीला-मुन्नी
ऐसे में भी उसे सुहाए शिरोरेख सी चुन्नी
भीतर-बाहर एक सरीखी उसकी जीवनचर्या
ना कठोर, ना जटिल, न दूभर, ना अभद्र, ना घुन्नी
वो इक रोचक उपन्यास है
वो उत्सव का अनुप्रास है
शायद वो है किसी निराले कवि की बिटिया बड़की
उसको है आभास सभी की लघुता-गुरुता द्वय का
उसे पता है अर्थ शब्द संग अलंकार परिणय का
छंद भंग हों संबंधों के यह संभव कब उससे
ध्यान हमेशा रखती है वो यति-गति का सुर-लय का
कभी अकड़ है पूर्णछन्द सी
कभी रबड है मुक्तछन्द सी
भाषा से सीखी हैं उसने सब बातें रोकड़ की
नवरस की अनवरत साधना उसका धर्म ग़ज़ब है
भाषा से अनुराग उसे जो है, अन्यत्र अलभ है
मात्र भंगिमा के बल पर वह श्लेष साध लेती है
उसे यमाताराजभानसलगा से फुर्सत कब है
हीरामन-होरी से परिचित
हर गौरा-गोरी से परिचित
उसने कंधों से समझी है पावनता काँवड़ की
© चिराग़ जैन
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