खाली बैठे पक गए हैं यार, कुछ लफड़ा करो
ज़िन्दगी लगने लगी बेकार, कुछ लफड़ा करो
इस कदर सूखा पड़ा है, देश भर के क्राइम में
भजन टेलीकास्ट होंगे, अब क्या प्राइम टाइम में
क्या रिपोर्टर सीख लें, ठुमरी, ग़ज़ल, कव्वालियाँ
एंकरों का नूर सारा पी गईं खुशहालियाँ
ओ बड़े लोगों के बरखुरदार, कुछ लफड़ा करो
बात तो छेड़ो, बतंगड़ हम बना देंगे जनाब
फूक मारो, उसको अंधड़ हम बना देंगे जनाब
कोई नेता बेवजह की बात क्यों बकता नहीं
क्या कोई मंत्री यहां, घोटाला कर सकता नहीं
मीडिया से डर गई सरकार, कुछ लफड़ा करो
जातिवादी आग वाला एक दंगा ही सही
या किसी बिल पर बिना मतलब अड़ंगा ही सही
प्याज की कीमत बढ़ा दो, तेल को मंदा करो
शेयरों का खेल खेलो, गोल्ड का धंधा करो
हाय स्टेबल हो गया बाज़ार, कुछ लफड़ा करो
सबको सेटिस्फाई क्यों करने लगा बाज़ार भी
बिन बहस बढ़ता नहीं, टीआरपी का ग्राफ भी
सनसनी के फेस पर मनहूसियत सी छा गई
पूज्य भ्रष्टाचार जी को कौन डायन खा गई
मर गए क्या देश के गद्दार, कुछ लफड़ा करो
हाय रे फैशन जगत् कैसा रिसाला पढ़ गया
सुंदरी के पब्लिकल चुंबन पे ताला जड़ गया
कोई कास्टिंग काउच का मसला-मसाला भी नहीं
कोई एमएमएस किसी ने क्यों उछाला भी नहीं
बोर सा लगने लगा अख़बार, कुछ लफड़ा करो
एक तो लफड़े बिना, ख़बरें ख़तम होने लगीं
और कमर्शियल ब्रेक की इनकम भी कम होने लगी
आंकड़ों के खेल की पुड़िया असर करती नहीं
मीडिया विश्लेषकों की दाल अब गलती नहीं
पत्रकारों का चले घर बार, कुछ लफड़ा करो
जब से पूरे मुल्क में फैला हुआ आनंद है
आउटपुट एडीटरों की आउटगोइंग बंद है
हम समझते थे कि बस हम ही यहां चंगेज़ हैं
हम बताते थे कि हम दुनिया में सबसे तेज़ हैं
आज अपनी रुक गई रफ्तार, कुछ लफड़ा करो
© चिराग़ जैन
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