रीतियों को तोड़ने का बल जुटा पाना कठिन है
बल जुटा लो तो सभी से बात मनवाना कठिन है
तर्जनी पर न्याय ठहराना कठिन है रे।
कृष्ण हो पाना कठिन है रे।
हर किसी की पीर का संज्ञान होना खेल है क्या
शब्दहीना आस का अनुमान होना खेल है क्या
प्रश्न, जिज्ञासा, शिक़ायत ही मिलें सबके नयन में
कृष्ण से पूछो कभी; भगवान होना खेल है क्या
हर किसी का द्वंद सुलझाना कठिन है रे।
कृष्ण हो पाना कठिन है रे।
रीतना है देवकी के भ्रातृसुख का कोष तुम पर
और राधा की अधूरी प्रीत का है दोष तुम पर
शांति का हर यत्न तुम करते रहे हो; किन्तु फिर भी
हर नपूती माँ उतारेगी विकट आक्रोश तुम पर
शाप पाकर ओंठ फैलाना कठिन है रे।
कृष्ण हो पाना कठिन है रे!
सृष्टि का हित ध्यान रक्खा, शेष बंधन तोड़ आए
जो हृदय को ढांप पाए, वस्त्र ऐसा ओढ़ आए
किस तरह अपनी सभी संवेदनाएँ मौन कर लीं
जो तुम्हारा मन समझती थी, उसे तुम छोड़ आए
प्रीत से मुख मोड़ कर जाना कठिन है रे।
कृष्ण हो पाना कठिन है रे।
© चिराग़ जैन
No comments:
Post a Comment