हथियार चले हुड़दंग हुआ
उस दिन पानी-पानी क्यों था सारा का सारा लालकिला
अपनों से हारा लालकिला
इस लालकिले ने कितने ही तख़्तों की उलट-पलट देखी
साज़िश देखीं, धोखे देखे, इतिहासों की करवट देखी
जब भी कोई दुश्मन आया, तब-तब हुंकारा लालकिला
अपनों से हारा लालकिला
प्राचीर बहुत शर्मिंदा थी, वीरों की कुर्बानी रोई
गणतंत्र हुआ था शर्मसार, छिपकर चूनर धानी रोई
धरती में गड़ता जाता था उस दिन दुखियारा लालकिला
अपनों से हारा लालकिला
उस दिन इसकी दीवारों पर बदनुमा दाग़ इक दंगा था
सबका अपना इक झंडा था, अपमानित खड़ा तिरंगा था
कैसे उजियारे में बदले इतना अंधियारा लालकिला
अपनों से हारा लालकिला
अब इसके दरवाज़े आकर, बातों का मेला रहने दो
कुछ देर सियासत बन्द करो, कुछ देर अकेला रहने दो
अब कुछ भी कैसे झेलेगा, भाषण या नारा लालकिला
अपनों से हारा लालकिला
शासन अधिकार लिए बैठा, जनता कर्त्तव्य बिसार गयी
उस दिन दोनों की मनमानी हर मर्यादा के पार गयी
शासित और शासक की जिद्द में पिसता बेचारा लालकिला
अपनों से हारा लालकिला
© चिराग़ जैन
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