Tuesday, March 16, 2021

कोरोना का स्विच सरकार के पास है

न्यूज़ बुलेटिन देखो तो दिमाग़ भन्ना जाता है। एक ख़बर बताती है कि कोरोना के डर के चलते मध्यप्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र में सरकारी नियमों में सख्ती। कोरोना के डर के कारण पंजाब सरकार ने बच्चों की परीक्षाएँ रद्द की। महाराष्ट्र के कुछ शहरों में नाइट कर्फ्यू। दिल्ली में 200 लोगों से ज़्यादा की सभा की मनाही। उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री ने कुम्भ पर लगाए प्रतिबंध हटाने को बताया जोखि़म भरा काम।
हम इन ख़बरों से डरने लगते हैं। जनहित के प्रति सरकार की गम्भीरता देखकर मन सरकार के प्रति श्रद्धा से भर जाता है। तभी ख़बर आती है कि खड़गपुर में केन्द्रीय गृहमंत्री की रैली में उमड़ी भारी भीड़। यह ख़बर देखते ही हमारी श्रद्धा की गति की दुर्गति हो जाती है। फिर एंकर बताती है कि ममता बनर्जी ने रैली में किया शक्ति प्रदर्शन। ...हमारी श्रद्धा मुँह बाये हमारा थोबड़ा देखने लगती है। फिर पता चलता है कि तमिलनाडु, असम, पुदुच्चेरी, पश्चिम बंगाल और केरल में जमकर चुनावी रैलियाँ हो रही हैं, जहाँ ज़्यादा से ज़्यादा भीड़ दिखाना राजनेताओं की सफलता का मापदण्ड है। इसलिए सरकारों ने कोरोना को समझा दिया है कि तुम्हें कब किस रूट पर रहना है।
सरकार जानती है कि इस देश की जनता अनुशासित नहीं है। इसलिए सरकार ने जनता को अनुशासन में रखने के लिए कड़े कानून बनाए हैं। जैसे फ्लाइट में जाओ, तो एयरपोर्ट पर एक सीट छोड़कर बैठो लेकिन जहाज में एक-दूसरे से चिपककर बैठ सकते हो। क्योंकि सरकार ने कोरोना को समझा दिया है कि फ्लाइट में चिपकने पर मत फैलना।
ऐसे ही फ्लाइट में मास्क लगाकर बैठना ज़रूरी है क्योंकि एक-दूसरे की साँस से संक्रमण फैल सकता है। लेकिन जब एयर होस्टेस खाना बाँटती है, तब सभी यात्री अपना मास्क हटाकर एक-दूसरे से सटे हुए वातानुकूलित कम्पाउंड में बेझिझक खा सकते हैं, क्योंकि उतनी देर के लिए सरकार कोरोना का स्विच ऑफ कर देती है।
कोविड प्रभावित राज्यों के मुख्यमंत्रियों से बात करने के लिए शीर्ष नेता वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग करके जनता को यह बताएंगे कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कितना जरूरी है। लेकिन बंगाल में वही शीर्ष नेता उन्हीं मुख्यमंत्री के साथ हाथ से हाथ मिलाकर जनता को बताते हैं कि यहाँ कोरोना का स्विच ऑफ है।
स्टेडियम में लाखों लोग बिना मास्क के उछल-उछलकर मैच देखते हैं तो कोरोना नहीं फैलता, क्योंकि वहाँ सरकार ने कोरोना का स्विच ऑफ कर दिया है। लेकिन बिटिया की विदाई के समय यदि बारातियों की संख्या अधिक हुई तो कोरोना फैलने का डर रहता है, इसलिए सरकार वहाँ पुलिस भेज देती है। पुलिसवाला ऑफिशियली या अन-ऑफिशियली कुछ चार्ज लेता है और कोरोना का स्विच ऑफ करके चला जाता है।
अंतिम संस्कार में बीस से ज़्यादा लोग न हों क्योंकि वहाँ स्विच ऑफ नहीं किया गया है। यह स्विच ऑफ करवाने का उपाय सरकार जानती है, इसीलिए जिस प्रदेश में जिस सरकार को जो करना हो, वह कर लेती है। उसके पास कोरोना का स्विच है। लेकिन जनता को छूट दे दी गयी तो बेचारा कोरोना कहाँ जाएगा? और कोरोना चला गया तो न्यूज़ चैनल्स को बाक़ी ख़बरें दिखानी पड़ेंगी। और हमारे लोककल्याणकारी गणराज्य की सरकारें यह कतई बर्दाश्त नहीं करेंगी कि न्यूज़ चैनल्स ख़बरों में पेट्रोल डालने का काम करें।
न्यूज़ एंकर बताती है कि बाज़ारों में लोग लापरवाही कर रहे हैं इसलिए सरकार को सख्त होना पड़ रहा है। और अगली ही ख़बर में किसी राजनेता का रोड शो या रैली दिखाई जाती है, जहाँ न कोई मास्क है, न कोई सेनेटाइजर, न कोई सोशल डिस्टेंसिंग... लेकिन यहाँ तो स्विच ऑफ है।
मध्यप्रदेश में उपचुनाव थे, तब वहाँ स्विच ऑफ था लेकिन अब वहाँ धारा 144 लागू है। पंजाब में हाल ही में चुनाव हुए और चुनाव ख़़त्म होते ही कोरोना का स्विच ऑन हो गया। गुजरात में हाल ही में चुनाव हुए और अब वहाँ कोरोना है। बंगाल में अभी चुनाव हो रहे हैं इसलिए कोरोना की हिम्मत नहीं है कि वहाँ एंट्री कर ले।
सरकार ने कोविड को अच्छे से समझा दिया है कि पश्चिम बंगाल में इन दिनों चुनाव का माहौल है। देश के महत्वपूर्ण जननायकों को जनता से संवाद करके वोट मांगने हैं। यह लोकतंत्र के लिए ज़रूरी है। लेकिन बच्चों की परीक्षा को टाल सकते हैं क्योंकि शिक्षा चुनाव से ज़्यादा ज़रूरी नहीं है। बाज़ारों में धारा 144 लागू है क्योंकि जीना चुनाव से ज़्यादा ज़रूरी नहीं है। कुम्भ और उर्स जैसे धार्मिक कार्यक्रमों में सावधानी बरतनी ज़रूरी है, क्योंकि धर्म भी चुनाव से ज़्यादा ज़रूरी नहीं है। अंतिम संस्कार में सावधानी बरतनी होगी, क्योंकि मरना भी चुनाव से ज़्यादा ज़रूरी नहीं है।

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